Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

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Page 528
________________ (४८२) वसंतराजशाकुने-अष्टादशो वर्गः। दृग्गोचरो ग्रामगतो धुतांगो भयंकरः श्वा सकलोद्यमेषु ॥ खादन्पुनःकंन नरं करोति सर्वापदामास्पदमाग्रहेण॥२०३॥ वामोऽथवा पृष्ठगतोऽतिरौद्रं भषन्भवेत्पांथपराजयाय ॥ पुनर्निवृत्ते कथयत्यभावं भषत्यथाग्रे यदिजागरूकः॥२०॥ एकोऽग्रतः पृष्ठगतस्तथान्यो यक्षौ न शस्तौ युगपद्भपंतौ ॥ सव्यापसव्यौ यदि तौ भवेतां तत्तोरणाख्यौ शुभदौ सदैव ॥ ॥ २०५ ॥ पादौ गृहे जिप्रति सारमेयः पुंसो यदा वक्ति तदाशु यात्राम् ॥ यियासतो जिप्रति लेढि वाथ प्रयाणभंगं प्रणयाद्वीति ॥२०६॥ ॥ टीका ॥ शनैःनखैर्वा वस्त्रविकर्षननर्थ विदधाति।यदि अग्रे सारमेयस्तथाविधो भवति तदाप्रवासिनामर्थलाभं कुरुते॥२०२॥दृग्गोचर इति।दृग्गोचरो दृष्टिविषयं गतः ग्रामगतः श्वा धुतांग:पितांगःसकलोयमेषु सकलप्रयत्नेषु भयंकरोति।खादन्पुनःश्वा के नरें मनुष्यं सर्वापदामास्पदमाग्रहेण हठान्न करोति अपि तु सर्वमपि नरं करोत्येव ॥ ॥ २०३ ॥ वाम इति ॥ वामः अथवा पृष्ठगतः श्वा अतिरौंदें भषन्पांथपराजयाय भवेत् । अथ यदि अग्रेजागरूकः श्वानःभवति तदा पुनर्निवृत्तेःप्रत्यागमस्य अभावं कथयति॥२०४॥एक इति । एकः अग्रतः अग्रे गतः तथाऽन्यः पृष्ठगतः एवं युगपपद्भपंतौ यक्षौ न शस्तौ । यदि सव्यापसव्यौ तौ भंवेतां तत्सदैव तोरणाख्यौ शुभदौ । २०५ ॥ पादाविति ॥ यदा सारमेयो गृहे पादौ जिवति तदा पुंसामाशु ॥भाषा ॥ अर्थ लाभ करे ॥ २०२ ॥ दृगिति ॥ ग्राम जायबेबारे मनुष्यकू देहर्फ़ कंपायमान करतो होय ऐसो श्वान दग्वैि तो संपूर्ण उद्यमनमें भय करै. और जो खावतो दीखै तो हटसं सर्व आपदानको स्थान मनुष्यकू करे ॥ २०३ ॥ वाम इशि ॥ बायो अथवा पीठपीछे श्वान अतिकर भूसे तो मार्गीको पराजय होय. अथवा जो श्वान गमनकर्ताके अगाडीकू भतिकर भूसतो होय तो पाछो आयवेको अभाव कहैं ये जाननो । २०४ ॥ एक इति ॥ एक अगाडी और एक पीठ पिछाडी संगके संग भंसते होय तो शुभ नहीं जाननो. जो वाये जेमते भागमें संगके संग बोलते होंय तो उनको तोरण नाम है सो शुभके देबेवारे जाननें । ॥ २०५ ॥ पादाविति ॥ जो श्वान घरमें पावनकू सूंघे तो पुरुषकू शीघ्रही यात्रा कहैहै , Aho ! Shrutgyanam

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