Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

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Page 575
________________ भाषाटीकासमेत। पूर्वोत्तरमुखो भूत्वा स्वप्नं प्राज्ञे प्रकाशयेत् ॥४१॥ इति नानामन्त्रशास्त्राण्यालोड्य स्वप्नमन्त्रकान् ॥ कृत्वैकत्र कृतो अन्थो लोकानां हितकाम्यया ॥ ४२ ॥ 'कलौ चतुर्गुणं प्रोक्तम् ' महर्षीणामिदं वचः ॥ स्मृत्वा नरस्तथा कुर्याद्विवस्तः फलकर्मणि ॥४३॥ नाविश्वस्तस्य सिद्धिः स्यादित्यृषीणां मतं मतम् ॥४४॥ इति ज्योतिर्विच्छ्रीधरसंगृहीतस्वप्नकमलाकरे दैविक स्वप्नप्रकरणकथनं नाम प्रथमः कल्लोलः ॥ १॥ सौवर्षकी आयुवाला होता, पूर्व उत्तर मुख कर पंडितसे स्वप्न कहना चाहिगा४१॥ इस प्रकारसे मंत्रशास्त्रसे अनेकप्रकारके स्वप्नप्रद मंत्रोंको देखकर लोकोंके हितकी कामनासे यह ग्रंथ संग्रह कियाहै ॥४२॥कलियुगमें चौगुना जप करना चाहिय यह महर्षियोंका वचनहै, यह विचार फलकर्ममें विश्वास करके जप करै ॥ ४३ ॥ विना विश्वासके सिद्धि नहीं होती यह महार्षिपोंका सिद्धान्त है ॥४४॥ इति श्रीज्योतिर्विच्छ्रीधरसंगृहीतस्वप्न कमलाकरे पंडितज्वालाप्रसादमिश्रकृतभाषा टीकायां प्रथमः कल्लोलः ॥ १ ॥ अथ द्वितीयः कल्लोलः २. अथ नानाविधान्ग्रंथान्समालोच्यावलोड्य च ॥ अस्मि द्वितीये कल्लोले शुभस्वप्नफलं ब्रुवे ॥ १॥ यस्य चित्तं स्थिरीभूतं समधातुश्च यो नरः॥ तत्प्रार्थितं च बहुशः स्वप्ने कार्य प्रदृश्यते ॥२॥स्वप्नप्रदा नव भुवि भावाः पुंसां भव न्ति हि ॥ श्रुतं तथानुभूतं च दृष्टं तत्सदृशं तथा ॥३॥ चिन्ता च प्रकृतिश्चैव विकृतिश्च तथा भवेत् ॥ देवाः पुण्या__ अब अनेक प्रकारके ग्रंथोंकी समालोचन कर और उनको देखकर इस दूसरे कल्लोलमें शुभस्वप्नोंका फलकहताहूं॥१॥जिसका चित्त स्थिरहै जिस मनुष्यकी धातुएँ समान हैंउसकीइच्छाकरनेपर स्वप्नमें बहुतसे कार्य दीखतेहैं । २ ॥ संसारमें स्वप्नदेनेवाले नौ प्रकारके भावहैं सुनाहुआ, अनुभव कियाहुआ, देखाहुआ, और उसकी समान ॥३॥ चिन्ता, प्रकृति, विकृति, देवतासे Aho! Shrutgyanam

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