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स्वमाध्याय। देवी स्वप्नेऽखिलं वदेत् ॥ २९ ॥ साधकस्तद्वचः श्रुत्वा तदैवान्वाहमाचरेत् ॥ नास्ति तस्य भयं वापि सर्वकालं सुखी भवेत्॥३०॥अथापरः स्वप्नप्रदः स्वप्नेश्वरीमन्त्रः॥ॐ अस्य श्रीस्वप्नेश्वरीमन्त्रस्य उपमन्यु ऋषिः। बृहतीच्छन्दः स्वप्नेश्वरी देवता । स्वप्ने कार्याकार्यपरिज्ञानाय जपे विनियोगः ॥ अस्य मन्त्रस्य व्यक्षरचतुरक्षरब्यक्षरैकाक्षरचतुरक्षरद्वयक्षरतः करन्यासाङ्गन्यासौ कृत्वा ध्यानं कुर्यात् ॥ वरदाभये पद्मयुगं दधानां करैश्चतुर्भिः कनकासनस्थाम् ॥ सिताम्बरां शारदचन्द्रकान्ति स्वप्नेश्वरी नौमि विभूषणाव्याम् ॥ (ॐ की स्वप्नेश्वरि कार्य मे वद वद स्वाहा ॥७॥) एतन्मन्त्रस्य लक्षजपं कृत्वा तदशांशतो बिल्वदलैर्हवनात्सिद्धिः ॥ पूर्वोदिते यजेत्पीठे षडङ्गत्रिदशायुधैः ॥ रात्रौ संपूज्य देवेशी मयुतं पुरतो जपेत् ॥ ३१ ॥ शयीत ब्रह्मचर्येण भूमौ दर्भा
सने शुभे ॥ देव्यै निवेद्य स्वं कार्य सा स्वप्ने वदति ध्रुवम् ॥ ध्यान करताहूं । इस मंत्रसे ध्यान करके [ई ओं नमो भगवतीति०६ ] इस मंत्रके पांचसहस्र जपसे सिद्धि होतीहै । इसके दशांशसे तिलोंका हवन करना चाहिये, कार्य अकार्यके ज्ञानके निमित्त रात्रिमें एकसौ आठवार जप कर शयनकरै तो स्वप्नमें देवी सब आकर कहती है ॥२९॥ साधक उसके स्वप्नके वचनको सुनकर वैसाही आचरण करें तो उसको कहीं भय नहीं होता वह सदा सुखी रहताहै ॥ ३० ॥ अब दूसरा स्वप्न देनेवाला स्वप्नेश्वरी मंत्र कहते हैं इस स्वप्नेश्वरी मंत्रका उपमन्यु ऋषि बृहती छंद स्वप्नेश्वरी देवतास्वप्नमें कार्य अकार्यके ज्ञानके निमित्त जपमें विनियोगहै इससे विनियोग छोडै इस मंत्रके दो अक्षर चार अक्षरसे अक्षर एकअक्षरसे चारअक्षरसे कर न्यास अंगन्यास कस्के ध्यान करे, वरदानभयेति यह ध्यानका मंत्रहै, कार्य यहहै कि चार हाथोंमें वरअभय दोकमल धारण किये सुवर्णके आसनमें स्थित श्वेतवस्त्र धारे शरदकालके चन्द्रमाकी समान कांतिमान गहने धारण किये श्वप्नेश्वरी देवीकी प्रणाम करताहूं [ऑक्लिस्वप्नेश्वरिकार्यमे वद वद स्वाहा ७ ] इस मंत्रको एकलाख जपकर दशांशसे बेलपत्रीका हवन करे तो सिद्धि होतीहै १ जब सूर्य पूर्वमें उदय । हो तो यजन करे सिंहासनपर देवीको पूजे, देव आयुधधारे चिन्तन करे, फिर रात्रिमें देवेशीका पूजन करै १००० मंत्र जपै ॥३१॥ और सुन्दरकुशाके आसनपर भूमिमें शयन करें और अपना
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