Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

View full book text
Previous | Next

Page 571
________________ भाषार्टीकासमेत । तस्योपरि न्यसेत् ॥ वारायै नम इत्येतनाममन्त्रेण भक्तितः ॥२६॥ प्राणप्रतिष्ठां कृत्वाथोन्मत्तद्रव्यं निवेदयेत् ॥ साङ् गपूजां विधायाथ मन्त्रमष्टोत्तरं शतम् ॥२७॥ जपित्वैकमना देव्या अग्रे कृत्वा च मस्तकम् ॥ शयीत तस्य सा देवी प्रन वीति शुभाशुभम् ॥ २८॥ अथापरः स्वप्नप्रदः पुलिन्दिनी मन्त्रः॥ नमो भगवतीतिमन्त्रस्य शङ्कर ऋषिः । जगती च्छन्दः। श्रीपुलिन्दिनी देवता। ई बीजम् । स्वाहा शक्तिः। पुलिन्दिनीप्रसादसिद्धयर्थे जपेविनियोगः ॥ ॐ इत्यादि करपडङ्गन्यासौ विधाय ध्यानं कुर्यात् ॥ बर्दापीडकुचाभि रामचिकुरां बिंबोज्वलच्चन्द्रिका गुनाहारलतांशुजालविलसगीवामधीरेक्षणाम् ॥ आकल्पद्रुमपल्लवारुणपदां कुन्देन्दुबि म्बाननां देवीं सर्वमयी प्रसन्नहदयां ध्यायेकिरातीमिमाम् ॥ इति ध्यात्वा ॥ (ई ॐ नमो भगवति श्रीशारदादेवि अत्यन्तातुले भोज्यं देदि देहि शहि एहि आगच्छ आगच्छ आगन्तुक हृदिस्थं ( अमुकं) कार्य सत्यं ब्रूहि ब्रूहि पुलि न्दिनि ईॐ स्वाहा ।। ६॥) अस्य मन्त्रस्य पञ्चसहस्रजपासिद्धिः । तदशांशतस्तिलानां हवनं कार्यम् ॥ कार्याका र्यविवेकार्थे रात्रावष्टोत्तरं शतम् ॥ जत्वा शयीत तस्याशु इस नाममंत्रसे भक्तिपूर्वक ॥ २६ ॥ प्राणप्रतिष्ठा करके मत्तद्रव्यको मादक पदार्थको निवेदन कर फिर सांग पूजाकर १०८ मंत्र जप ॥ २७ ॥ देवीके आगे मस्तक झुकाकर एकाग्रमनसे जप कर और देवी के चरणोंमें शिर करके सोजाय तो देवी स्वप्नमें शुभाशुभ कहतीहै ॥२८॥ अब दूसरा स्वप्नदेनेवाला पुलिन्दनी मंत्र कहतेहैं ओं नमो भगवतीति, इस मंत्रका शंकर ऋषि जगती छन्द पुलिन्दिनी देवता ई वीज स्वाहा शक्तिपुलिन्दिनीकी प्रसन्नताके निमित्त जपमें विनियोगः ॐ इत्यादिसे अंगन्यास कर न्यास करे पीछे ध्यान करे ॐ बहापीडेति यह ध्यानका मंत्रहै मोरपंखधारे स्तनोंपर लम्बायमान केश बिम्बकी समान उज्ज्वल चंद्रिका चौटली तथा लताओंके हार गलेमें डाले शोभायमान अधीर नेत्र कल्पद्रुमके कोमल पत्रोंकी समान लाल चरण कमल कुन्दचन्द्रमा और बिम्बाफलकी समान मुख, सर्वमयी प्रसन्न हृदयवाली किराती देवीका Aho ! Shrutgyanam

Loading...

Page Navigation
1 ... 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606