Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

View full book text
Previous | Next

Page 530
________________ ( ४८४ ) वसंतराजशाकुने - अष्टादशो वर्गः । तिष्ठत। प्रवसतां च नराणां मंदिरे प्रविशतां च समस्तम् ॥ दक्षिणं भषणचेष्टितमिष्टं वामकं पुनरुशंति विदुष्टम् ॥ ॥ २१० ॥ वामकेन यदि दक्षिणमंगं दक्षिणेन भषणो यदि वामम् ॥ संस्पृशत्यभिमतो न कदाचित्तत्प्रयोजनविधौ क्वचनापि ॥ २११ ॥ उकाराख्यात्स्यादुकाराच शब्दाद्वामे पार्श्वे सारमेयोऽर्थसिद्ध्यै | व्याक्षेपाय प्रोक्त आकारशब्दः पृष्ठे शब्दा रोधकाः सर्व एव ॥ २१२ ॥ ॥ टीका ॥ तीतरतरद्वंद्वः ॥ २०९ ॥ तिष्ठतामिति ॥ तिष्ठतां स्थाने स्थितवतां तथा प्रवसतां गच्छतां तथा मंदिरं प्रविशतां च नराणां मनुष्याणां समस्तं दक्षिणं भषणचेष्टितमिष्टं वामकं पुनः भषणचेष्टितं विदुष्टं विशेषेण दुष्टमुशंति कथयतिः २१०वामकेनेति ॥ यदि श्वा वामकेन दक्षिणमंगं स्पृशति यदि दक्षिणेन च वामं स्पृशति स वा कदाचित् कचनापि प्रयोजनविधौ कार्यविधाने न अभिमतः ॥ २११ ॥ ऊकाराख्यादिति ॥ सारमेयः वामे पार्श्वे सव्यप्रदेशे ऊकाराख्याच्छब्दादुकाराच्छब्दाच्च अर्थसिद्धयै भवति तथा आकारशब्दोव्याक्षेपाय भवति । पृष्ठे पृष्ठभागे शुनः सर्वे शब्दाः ॥ भाषा ॥ चेष्टा करतो होय वो श्वान कार्यनमें वांछित संगत योग्य है ॥ २०९ ॥ तिष्ठतामिति ॥ बैठे हाय गमन करते होंय वा घरमंदिर में प्रवेश करते होंय उन मनुष्यनकूं श्वानकी समस्त जेमनी चेष्टा शुभ और बांई चेष्टा अशुभ दूषित क हैं ॥ २२० ॥ वामकेनेति ॥ जो श्वान वांयो होकर जेमने अंगकूं स्पर्श करतो होय जो जेमनो होय वांये अंगकूं स्पर्श करतो होय तो कदाचित् कोई कार्यनें योग्य शुभ नहीं जाननो ॥ २१९ ॥ ऊकारेति ॥ श्वानके ऊकार शब्द बोलते वा ऊकार अर्थ जाननो. जो भाकार शब्द बोलतो होय तो आक्षेपके श्वानके समस्त शब्द शब्द बोलेसँ अर्थसिद्धि के अर्थ जाननो और पीठपीछे Aho! Shrutgyanam

Loading...

Page Navigation
1 ... 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606