Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas
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(४७४) वसंतराजशाकुने-अष्टादशो वर्गः। यक्षः पुरस्तादवनि विलिख्य यातुर्मुखं पश्यति चेत्तदानीम्।। तत्रैव देशे द्रविणस्य लाभं ब्रवीति कार्यों न हि संशयोत्र ॥ ॥ १७४ ॥ यातारमाजिघ्रति संप्रयाति तदानुलोम्येन च सारमेयः॥ मूर्भोऽथवा यो विनिहंति कडूं केनापि पादेन स सिद्धिहेतुः ॥ १७९॥ आदाय यक्षः कुसुमानि धावन्ब्रवीति यातुर्विपुलां समृद्धिम् ॥ दृष्टोऽपि कृष्णः शुनकोऽखिलानि निहन्ति कार्याणि समीहितानि ॥ १७६॥ वामेन गच्छन्पथिकेन सार्द्ध ददाति रम्यां रमणीं धनं च ॥ वस्तु मार्गे सह दक्षिणेन कौलेयकस्तस्करभीतिहेतुः॥ १७७॥
॥ टीका ॥
मानो ध्रुवं मनोरथं पूरयति ॥ १७३ ॥ यक्ष इति ॥ यक्षः चेद्यदि पुरस्तादवनि विलिख्य यातुर्मुखं पश्यति तदानी तत्रैव देशे द्रविणस्य लाभं ब्रवीति।हि निश्चितं अत्र संशयो न कार्यः॥१७४॥ यातारमिति ॥ स सारमेयः सिद्धिहेतुर्भवति । यः यातारमाजिवति तदानुलोम्येन च प्रयाति। अथ वा केनापि पादेन मूर्ध्नः कंडं विनिहंति ॥१७५।। आदायेति ।। यक्षः कुमुमानि आदाय गृहीत्वा धावन्यातुर्विपुलां समृद्धिं ब्रवीति । कृष्णः शुनकः दृष्टोपि विलोकितोपि अखिलानि समीहितानि का
र्याणि निहति विनाशयति ॥ १७६ ॥ वामेति ॥ कौलेयकः पथिकेन साई वामे. न भागेन गच्छेत्म्यां रमणीं धनं च ददाति । तु पुनःमार्गे पथिकेन सह दक्षिणे
॥ भाषा॥ करै और वायो जेमनो देखतो होय तो निश्चय मनोरथकू पूरण करै ॥ १७३ ॥ यक्ष इति ॥ जो श्वान अगाडी पृथ्वीकू लिख करके वा खोदकरके गमनकर्ताके मुखर्फे देखै तो वाई देशमें धनको लाभ होय निश्चय संदेह यामें संदेह नहीं है ॥१७४॥ यातारमिति ॥ जो श्वान गमन कर्ताकू आयकरसंघ और अनुलोमगतिकर चलो जाय अथवा कोई पावन करके मस्तककं खजावतो होय तो वो श्वान सिद्धि करै ॥ १७५ ॥ आदायेति ॥ श्वान पुष्प लेकरके दौडे तो गमन कर्ताकू विपुल समृद्धि करै. और कालो श्वान दखैि तो समग्र कार्य विनाशकरै ॥ १७६ ॥ वामेनेति ॥ वान गमनकर्ताके संगसंग वामभागमें गमन कर तो सुंदर रमणी और धन देवै. जो मार्गमें गमनकर्ताकी संग जेमने भागमें गमन करै
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