Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

View full book text
Previous | Next

Page 523
________________ श्वचोष्टिते यात्राप्रकरणम् । (४७७) क्रीडां गृहश्वा यदि गेहशुन्यांकरोति तद्वंधुसमागमः स्यात्॥ शुनां गणः क्रीडति यो मिलित्वा किंचिद्भपन्सोऽभिमतोतिशिष्टः ॥ १८५॥ नृणां प्रयाणे भवनागमे वा श्वानो रमंते यदि सप्रमोदाः ॥ तदिष्टकार्येऽपि भवेत्प्रमोदः समा- . गमश्च स्वजनैः समानम् ॥ १८६॥ अवामयाने सह संग्रवृत्ते परस्परं चुंबति यक्षयुग्मे ॥ स्निग्धावलोकिन्यवगृहति स्याद्रतप्रसक्ते च युवत्यवाप्तिः ॥ १८७॥ गवा सह क्रीडति चेत्तदानी प्रयोजनं सिद्धयति यद्यदिष्टम् ॥ ग्रामप्रवेशे पुरतोऽभि मूत्र्य प्रयात्यभीष्टाशनलब्धये खा॥ १८८॥ ॥ टीका ॥ स सिद्धिप्रदः स्यात्॥१८४॥ क्रीडामिति ॥ यदि गृहश्वा गेहशुन्या क्रीडा करांति तदा बंधुसमागमः स्यात्।यःशुनां गणः किंचिद्भषन्मिलित्वा क्रीडति सःअतिशिष्टः अतिमतः।१८५।नृणामिति॥नृणां प्रयाणे यात्रायां भवनागमेवा यदि श्वानःसप्रमो. दाःहर्षसहिताः रमते तदेष्टकार्येऽपिप्रमोदो भवेत्।स्वजनैःसमानं समागमश्च भवति ॥१८६॥अवामेति ॥ यक्षयुग्मे अवामयाने सहसंप्रवृत्ते सति परस्परं चुंबति सति स्निग्धावलोकिनि सति अवगृहति सति आलिंगति सति रतप्रसक्ते मैथुनासक्ते च युवत्यवाप्तिः स्यात् ॥ १८७ ॥ गवति ॥ चेच्छा गवा धेन्वा सह क्रीडति तदानीं यद्यदिष्टं प्रयोजनं तत्सिद्ध्यति।अथ ग्रामप्रवेशे श्वा पुरतः पुरस्तादभिमूत्र्य प्रस्रवणं ॥ भाषा ॥ ऊंचो पाँव करे सूतो होय तो श्वान सिद्धि देवै ॥ १८४ ॥ क्रीडामिति ॥ जो वरको श्वान गेहकी शुनीमें क्रीडा करै तो बंधुनको समागम होय. जो श्वाननको समूह कळूक भूसतो हुयो सब मिलकरके क्रीडा करे तो वो श्वान आतिश्रेष्ठ बांछित करवेंवालो जाननो ॥ १८५ ॥ नृणामिति ॥ मनुष्यनकू यात्रा समयमें वा प्रवेश समयमें जो श्वान हर्ष सहित रमण कर तो वांछित कार्यमेंभी हर्ष होय. और स्वजनजननकरके समागम होय ॥ १८६ ।। अवामेति ॥ श्वानको जोडा जेमने भागमें गमन करे, वा संग चले, वा परस्पर चुंबन करे, वा स्नेह सहित अवलोकन करते होंय वा आलिंगन करते होय वा मैथुनमें आसत होय. तो स्त्रीकी प्राप्ति होय ॥ १८७ ॥ गवेति ॥ जो श्वान गौतूं क्रीडा करै तो जो जो प्रयोजन होय वो वो कार्य सिद्ध होंय. और ग्राम प्रवेशमें श्वान अगाडी मूत्र करके च Aho! Shrutgyanam

Loading...

Page Navigation
1 ... 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606