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पोदकीरतेशुभचेष्टाप्रकरणम्। अन्यत्र यानादधिवासितस्य सिद्धयुन्मुखं यात्यपरत्र कार्यम् ॥ प्रदीप्तयानात्पुनरापतंति संग्रामवित्तक्षयकार्यनाशाः॥ ॥ ८७॥ दीप्तस्थिते पक्षिणि देशभंगो दुष्टप्रदेशोपगते च दुःखम् ॥ आसीनपक्षिप्रपलायिते तु भवेदिमिश्रः सुखदुःखभावः ॥८८॥ स्त्रीनाशचित्तस्थितकार्यनाशौ स्यातां रिम्सापरिहारभावात् ॥ भुजंगवह्निप्रभवे कुमार्या भये भयं' भावि कुतोप्यवश्यम् ॥ ८९ ॥
॥ टीका ॥
राजयः स्यात् । तदीये विजये जनस्य विजयः स्यात् ॥८६॥अन्यत्रेति ॥ अधिवासितस्य शकनार्थ निमंत्रितस्य अन्यत्र यानात् सिद्धान्मुखं कार्यमपरत्र यातिापुनःप्रदीतयानासंग्रामवित्तक्षयकार्यनाशा आपतंति समुपतिष्ठते संग्रामश्च वित्तक्षयश्च कार्य नाशश्च संग्रामवित्तक्षयकार्यनाशाःइतरेतरद्वंद्वः।।८७॥दीप्तेति॥पक्षिणि विहंगे दीप्त. स्थिते देशभंगः स्यात् दुष्टप्रदेशोपगते पक्षिणि दुःखं स्यात्।आसीनपक्षिपविलंबिते च पक्षेवाप्रपलायितेअथवा आसीन उपविष्टोय पक्षीतस्यप्रपलायनेनसुखदुःखयोविमि श्रभावौभवतः॥८॥स्त्रीति॥रिरंसापरिहारभावादितिरंतुमिच्छा रिसातस्या परि हारभावःपरित्यागभावस्तस्मात्परित्यागात्स्त्रीनाशचित्तस्थितकार्यनाशौस्यातांभवेतां स्त्रीनाशश्चचित्तस्थितकार्यनाशश्वस्त्रीनाशचित्तस्थितकार्यनाशौइतरेतरद्वंद्वः।कुमार्याः देव्याःभुजंगवह्निप्रभवेभुजंगश्च वह्निश्चइतरेतरद्वंद्वातयोःप्रभवेसंजातेभयेकुतोऽप्यव
॥ भाषा ॥
और संग्राममें जय पोदकीको होय तो मनुष्यको भी जय होय ॥ ८६॥ अन्यत्रेति ॥ पोदकी कहूं बैठी होय और वहांसे उडके अन्यत्र गमन करजाय तो मार्गी जहां जातो होय वहांसूं और जगह जाय तब कार्यसिद्धि होय और प्रदीप्तदिशामें जायकर फिर पीछे आवे तो संग्राम करावे धनको क्षय करावे कार्यको नाश करे ॥ ८७ ॥ दीप्तति ॥ पक्षी दीप्तादिशामें स्थित होय तो देशभंग होय और दुष्टदेशमें बैठी होय तो दुःख होय और जो पक्षी बैठी होय फिर पंख लंबे कर दे अथवा भाज जाय तो सुख दुःख मिलवां होय ॥ ८ ॥ स्त्रीति ॥ और कुमारी जो पोदकी ताके रमणकी इच्छा होय किर परित्याग कर दे तो स्त्रीको नाश करै और चित्तमें स्थित जो कार्य ताको नाश करै और सर्प अग्नि इत्यादिकन करके अवश्य भय हो
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