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वसंतराजशाकुने त्रयोदशो वर्गः। . कोटरमध्यगतो यदि पक्षी कूजति पार्थिववारुणनादैः ।। तत्प्रथमार्जितमत्ति नरोऽर्थ नान्यमुपार्जयितुं स समर्थः॥ ॥ १२९ ॥ पिंगो ब्रजित्वा यदि दक्षिणेन स्थित्वा च शांते शुभदं निनादम् ॥ कुर्यात्तददि महतीं ददाति तां हत्यशांतस्वरचेष्टितोऽसौ ॥ १३० ॥ वामं गतःशांतकृतस्थितिश्चेत्पिगेक्षणः शोभनशब्दचेष्टः॥ चिरेण लाभं कुरुते नराणां तं दुष्टचेष्टारहितो निहन्ति ॥१३१॥ भूमिजवह्निजवारिजनादैल्पति शोभनदेशनिविष्टा ॥ पिंगलिका यदि शोभनचेष्टा यच्छति तद्धनधान्यपुरंध्रीः ॥१३२॥
॥टीका ॥ शब्दं कुरुते स पतत्री अचिरेण मृत्युदः स्यात् ॥ १२८ ॥ कोटरेति ॥ यदि कोटरमध्यगतः पक्षी पार्थिववारुणनादैः कूजति तत्प्रथमार्जितं वित्तं नरोऽत्ति नान्यं स उपार्जयितुं समर्थों भवति॥१२९॥पिंग इति॥ यदि दक्षिणेन पिंगो ब्रजित्वा शांतप्रदेशे स्थित्वा शुभदं निनादं कुर्यात्तदा महती ऋद्धिं ददाति।अशांतस्वरचेष्टितः अ. सौ हंति॥१३०॥वामामति ॥ चेत्पिगेक्षणः शोभनशब्दः शांतकृतस्थितिःवामं ग. तो नराणां चिरेण लाभं कुरुते तं दुष्टचेष्टारहितो निहन्ति अचिरादेव लाभं करोतीत्यर्थः ॥ १३१ ॥ भूमिजेति ।। यदि पिंगलिका शोभनदेशनिविष्टा भूमिजवह्निजवारिजनादैर्जल्पति कीदृशीशोभनचेष्टा तद्धनधान्यपुरंधीः पतिपुत्रादिमतीः स्त्रीः
॥ भाषा ॥
कोटरेति ॥ वृक्षकी कोटरामें स्थित होयकरके जो पिंगल पार्थिव वारुण नाद करै तो प्रथम संच यकियो धन तो खायजाय वो फिर और संचय करबेकू समर्थ नहीं होय ॥ १२९ ॥ पिंग इति॥ जो पिंगल दक्षिणभागमें जायकर शांतदेशमें स्थित होयकर शुभनाद करै तो महान् ऋद्धि देवै. फिर जो अशांतस्वरचेष्टा करै तो वा ऋद्धिकुं नाश करै ।। १३० ॥ वाममिति ।। जो पिंगल वामभागमें होय और शांतदेशमें स्थित होय और शोभन शब्दचेष्टा करतो होय तो मनुष्यनकू शीघ्रही लाभ करै. और जो दुष्ट चेष्टा करतो होय वा शब्द दुष्ट करतो होय तो ता लाभकू नाश करै ॥ १३१॥ भूमिजति ।। जो पिंगलिका सुन्दरस्थानमें बैठी होय शोभनजाकी चेष्टा होय और पृथ्वी अग्नि जल इनते हुये जे नाद तिनकरके बोलती होय तो वा पुरुषकू धनधान्यपुरंध्री नाम पतिपुत्रादिक जाके विद्यमान ऐसी स्त्री देवै ॥ १३२ ॥
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