Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

View full book text
Previous | Next

Page 506
________________ ( ४६० ) वसंतराजशाकुने - अष्टादशो वर्गः । उदङ्मुखो वक्ति रुवन्निशीथे द्विजोपपीडां मरणं गवां च ॥ कुमारिका दूषणगर्भपातवह्नीन्निशांते शिवदिङ्मुखः श्वा ॥ १२६ ॥ प्रातर्दिनेशाभिमुखोऽग्निदिक्स्थो भषन्विधत्तेऽनलचौर भीतिम् ॥ दिनस्य मध्येऽनिलमृत्युभीतिं सरक्तपातं कलहं दिनांते ॥ १२७ ॥ भषन्दिनेशाभिमुखः प्रभाते ग्रामस्य मध्ये नृपनाशनाय ॥ वच विमुंचन्यदि दृश्यते श्वा सिद्धेऽपि कार्ये तदुपद्रवः स्यात् ॥ १२८ ॥ ॥ टीका ॥ झंझादिवायुः तयोर्भीतिर्भयं तस्यै स्यात् ॥ १२५ ॥ उदङ्मुख इति ॥ निशी - थे अर्द्धरात्रे उदङ्मुखः उत्तरदिग्वक्रः श्वा रुवन्द्विजोपपीडां ब्राह्मणानां बाधां गवां मरणं च वक्ति । निशांते निशावसाने शिवदिङ्मुखः इशानवदनः श्वा कुमारिकादूषण गर्भपातवह्नीन्वक्ति कुमारिकायाः दूषणं लांछनादि गर्भपातो गर्भस्रावः वह्निः अग्निदाहः पदैकदेशे पदसमुदायोपचारादेतेषामितरेतरद्वंद्वः ॥ १२६ ॥ प्रातरिति ॥ प्रातः प्रभाते अभिः। दिक्स्थ दिनेशाभिमुखो भषञ्श्वा अनलचौरभीति वह्नितस्कराभ्यां भयं विधत्ते । दिनस्य मध्ये दिनेशाभिमुखो भषञ्श्वा अनिल मृत्युभीतिं विधत्ते । दिनांते दिनेशाभिमुखो भषञ्श्वा सरक्तपातं कलहं विधत्ते ॥ १२७ ॥ भषन्निति ॥ प्रभाते प्रभातकाले ग्रामस्य मध्ये मूर्यसम्मुखो भषञ्श्वा नृपनाशनाय स्यात् । यदि दिनेशाभिमुखः श्वा विष्ठां विमुचन्दृश्यते तदा सिद्धेऽपि कार्ये उपद्रवः ॥ भाषा ॥ वायु दिशा माऊं मुख करके बोले तो चौर पवन इनको भय करै ॥ १२५ ॥ उदङमुखइति ॥ अर्द्धरात्रिमें उत्तरदिशामें मुखकर खान बोलै तो ब्राह्मणसूं बाधा करे. और गौनको मरण होय और रात्रिके अंतमें ईशान माऊं मुख करके बोले तो कन्याके कन्यापनेको दूषण, और गर्भपात, अग्निको लगनो ये होंय ॥ प्रातरिति ॥ प्रभातकालमे अग्निदिशामें स्थित होय, सूर्यके सम्मुख देखतो जाय, शब्द करै तो अग्नि चौर इनको भय करें और दिनके मध्य में सूर्य सम्मुख देखतो जाय, १२६ ॥ शब्द करे तो वायु मृत्यु इनको भय करे. सायंकालकूं सूर्य के और शब्द करै तो श्वान रक्तपात सहित कलह करावे ॥ १२७ कालमें ग्रामके मध्य में सूर्य के सम्मुख देखकर श्वान बोले तो Aho! Shrutgyanam सम्मुख देखतो जाय, ॥ भषन्निति ॥ प्रभातराजाके नाशके अर्थ

Loading...

Page Navigation
1 ... 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606