Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas
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(४६४) वसंतराजशाकुने-अष्टादशो वर्गः।
भषनभीक्ष्णं भवनस्थितानामावेष्टनं चेत्कुरुते कदाचित् ॥ कौलेयकोऽवश्यमुपस्थितं तज्ञेयं भयं बंधनसंप्रवृत्तम् ॥ ॥ १३९॥लिप्तपूरितचतुष्कविशेषे प्रांगणे श्वनिवहो रममाणः ॥ संपदं प्रवितरत्यतिबह्रीं तत्खनन्पुनरनर्थकरोऽसौ ॥ १४० ॥ एकेन यो रोदिति लोचनेन दोनोऽल्पभोजी स्वगृहस्य दुःखम् ॥ करोत्यसौ क्रीडति यस्तु गोभिः क्षेमं सुभिक्षं कुरुते मुदं श्वा ॥ १४१॥ इति वसंतराजशाकुने श्वचेष्टिते शुभाशुभज्ञानप्रकरणम् ॥७॥
॥ टीका।
॥ १३८ । भषनिति । अभीक्ष्णं भषन्कौलेयकश्चेद्भवनस्थितानां कदाचिदावेष्टनं कुरुते तदा अवश्यं बंधनसंप्रवृत्तं भयमुपस्थितं ज्ञेयम् ॥ १३९ ॥ लिप्तेति ॥ लिप्ताः छगणादिना पूरिताः अक्षतैश्च एवंविधे चतुष्कविशेषे चउक इति प्रसिद्ध प्रांगणे अजिरे रममाणः क्रीडां कुर्वाणः श्वनिवहः अतिबहीं संपदं वितरति । तत्खनन्पुनः असौ श्वनिवहः अनर्थकरः स्यात् ॥ १४० ॥ एकेनेति ॥ यः श्वा एकेन लोचनेन रोदितिते । कीदृक् । दीन दुःखितः अल्पभोजी अल्पाहारी असौ श्वा गृहस्य दुःखं करोति । यस्तु गोभिः समं क्रीडति स श्वा क्षेमं सुभिक्षं मुदं च कुरुते ॥ १४१ ॥ ___ इंति वसंतराजटीकायां श्वचेष्टिते शुभाशुभज्ञानप्रकरणं सप्तमम् ॥७॥
॥ भाषा ॥ भषन्निति ॥ वारंवार बोलतो हुयो श्वान धरमें स्थित जे पुरुष तिनकुं आवेष्टन करल अर्थात् प्रदक्षिणासी कर जाय तो अवश्य बंधनको भय निकटही जाननो ॥ १३९ ॥ लिप्तति ॥ गोबरतूं लीपकर चावलनकर चौक पुरो होय ऐसे आंगनमें आयकर श्वान रमण करै तो अति संपदा करै. जो वा चौककू खोदे तो अनर्थ करै ॥ १४० ॥ एकेनेति ॥ जो श्वान एक नेत्र करके रोवै बडो दुःखी होय थोडे आहारको करवेवालो होय तो वा वरमें दुःख करै जो श्वान गौनकरके सहित क्रीडा करै वो श्वान कल्याण और सुभिक्ष और हर्ष करै ॥ १४१ ।।
इति श्रीवसंतराजभाषाटीकायां श्वचेष्टिते शुभाशुभप्रकरणं सप्तमम् ॥ ७॥ ..
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