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पल्लीविचारप्रकरणम् । ॥ टीका ॥
( ४१९ )
श्रीरामो जयति ॥ पुनर्ग्रथांतरात्पल्लीविचारो यथा । प्रभाते द्वारमुद्घाटयतां परि पल्ली दृश्यते तदा प्राघूर्णका आयांति १ द्वारशाखोपरि आरोहति तदाऽथ लाभं कथयति २ पादे आरोहति गमनं कथयति ३ बहिर्गच्छति राजभयं कथयति ४ धूमस्थाने यांती अग्निभयं कथयति ५
॥ इति प्राभातिकचेष्टा ॥
पल्लयां शिरसि पतत्यां श्रीमतां लक्ष्मीर्नश्यति । दरिद्राणां तु दारिघं नश्यति १ कष्टपतितानां मस्तके पतति कष्टं याति २ पृष्ठे पतति चात्र मृत्युवार्त्ता आयाति ३ अग्रे उत्तरति तदाऽभीष्टलाभ कथयतेि ४ दक्षिणांगे गलकोपरि पतंती तदा मित्रमेलनं स्यात् ५ हस्तोपरि पतंती अर्थलाभाय स्यात् ६ पिचंडिकोपरि पतिता गमनाय स्यात् ७ पिचंडिकात उपरि पतंती गच्छन्ती शुभगमनं ब्रूते ८ पिचंडि - कातो नीचैरुत्तरंती अशुभगमनं ब्रूते ९ पुहंचकोपरि पतंती राजमुद्रालाभं दिशति १०
॥ भाषा ॥
अब और ग्रंथांतरनको पल्ली विचार कहें हैं. प्रभातकालमें द्वारो खोलते ही पल्ली ऊपर दांखे तो कोई अतिथि आवे ॥ १ ॥ द्वारेकी चौखट चढती दीखै तो शब्द करै तो अर्थका लाभ होय ॥ २ ॥ नीचे पाँवनमें शब्द करें वा चढजाय तो गमन करावे ॥ ३ ॥ द्वारके बाहर निकल जाय तो राजभय करावे ॥ ४ ॥ जो धूमके स्थानमें चली जाय तो अग्निको भय करे ॥ ५ ॥ प्रभातकालकी चेष्टा कही, अब देहकी चेष्टा कहैं हैं. जो पल्ली धनमानके मस्तक पडै तो वांकी लक्ष्मी नष्ट होय जाय । जो दरिद्रीके मस्तकर्पे पडे तो वाको दरिद्र नाश करे ॥ १ ॥ कष्टमें पडे होंय उनके मस्तकपै पडै तो उनको कष्ट मिले ॥ २ ॥ पीठपै पडे तो मृत्युकी वार्त्ता आवे ॥ ३ ॥ को लाभ होय ॥ ४ ॥ जेमने अंग में गलेके ऊपर पडै तो मित्रको मिलाप होय ॥ ५ ॥ हाथ ऊपर पडे तो अर्थको लाभ होय ॥ ६ ॥ उदरपै पडे तो गमनके अर्थ जाननो ॥ ७ ॥ उदरसूं ऊंची पडे फिर चढजाय तो शुभ गमन करावे. ॥ ८ ॥ उदरसूं नीचे उतरे तो अशुभ गमन करावे ॥ ९ ॥ पहुँचेके ऊपर पड़े तो राजमुद्राको लाभ होय ॥ १० ॥
अगाडी उतरे तो वांछित
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