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पिंगलास्ते संकीर्णप्रकरणम् । (३६१) खेदं भयं चांबुहुताशशब्दौ पृथ्वीपयःखध्वनयोऽर्थसिद्धिम् ॥ कुर्वति निघ्नंति फलानि शीघ्रं त एव जातेन विपर्ययेण ॥१४१॥ खाग्निध्वनी वह्निनभोध्वनी यो कार्यस्य नाशं कुरुतः कलिं च ॥ यः कोपि तिष्ठन्नपि यत्र तत्र मृत्युप्रदो वातरवेण पिंगः ॥१४२॥ जीर्णभनफलवल्लिवेष्टिताः शुष्ककीटहतभूरिकोटराः॥ पादपा भयविनाशहेतवः स्याच तद्वदिह मारुतं रुतम् ।।१४३॥ अंभोनभोजौनिनदौ जलाशा
खाश्रितो व्याहरति क्रमेण ॥ पिंगक्षणश्चेनियतं भयं तत्स्याद्वैविध्वंसविधायि पुंसाम् ॥१४४॥
॥ टीका ॥ ये च विघ्नं विधत्तः ॥ १४० ॥ खेदमिति ॥ अंबुहुताशशब्दो खेदं भयं च कुरुतः । पृथ्वीपयः खध्वनयोऽर्थसिद्धिं कुर्वति।त एव विपर्ययेण जातेन शीघ्रं फलानि निनंति ॥१४१॥खामीति।।खामिध्वनीनभोवह्निध्वनी वा कार्यस्य नाशं कलिं च कुरुतः यः कोपि पिंगः यत्र तत्र निष्ठन्वातरवेण मृत्युप्रदो भवति ॥ १४२ ॥ जाणति ॥ जीर्णा जर्जरा भमा फलवल्लिभिः परितो वेष्टिताः शुष्का कीटहताः कीटाकुलाःभूरिकोटराः भूरीणि कोटराणि येषु ते तथा एवंविधाः पादपा भयविनाशहेतवः स्युः इह तद्वन्मारुतं रुतं भवति ॥ १४३ ॥ अंभ इति ॥ चेपिगेक्षणः जलाशाखाश्रितः क्रमेण अंभोनभोजौ निनदौ व्याहरति तदा पुसां धैर्यविध्वंसविधायि नियतं भयं
॥ भाषा ॥
धनको नाश करै. जो प्रतिलोम भाव होय तो मृत्यु करै, और अग्नि जल ये दोनों शब्द करैतो वांछित कार्यमें विन्नकरै ॥ १४० ॥ खेदमिति ॥ जो पिंगलके जल अग्नि ये शब्द होय तो खेद भय करै और पृथ्वी, जल, आकाश ये ध्वनि अर्थसिद्धि करें. जो ये शब्द विपरति होय तो शीघ्रही फलको नाश करै ॥१४१॥ खामीति ।। पिंगलके आकाश और अग्नि ये दोनों शब्द और अग्नि आकाश ये दोनों शब्द कार्यको नाश और कलह करें. जो कोई पिंगल जहां तहां स्थित होय वातशब्द करै तो मृत्युको देबेवारो होय ॥ १४२ ॥ जीर्णेति ॥ जीर्ण वृक्ष होय, भग्न होय, फल वल्ली इन करके वेष्टित होय. सूखो होय, कीडानकरके आकुल होय, बहुतसी कोटरा जिनमें होय, ऐसे वृक्ष भयविनाशके करवेवारे, जो इनमें पिंगल मारुत शब्द करे तो भयविनाश जाननो ॥ १४३॥ अंभ इति ॥ जो पिंगल जल करके गीलीशा
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