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वसंतराजशाकुने - सप्तमो वर्गः ।
आहारदानग्रहणाशनानि कुर्वन्ति खेलति कलं ध्वनंति ॥ वामे खगी यद्यबला सुशीला निर्मैथुनं कर्म करोत्यवा मे ॥ ३२१ ॥ वामरवा यदि वाप्यनुलोमा पांडविकां तदभीष्टचरित्रा || वाम गतिर्यदि दक्षिणशब्दा योषिदसौ नियतं तदसाध्वी ॥ ३२२ ॥ दक्षिणतो यदि मैथुनसंस्थं पांडविकायुगलं कुलटा तत् ॥ वामंदिशित्वथ तादृशचेष्टं स्यात्तदसो युवतिः पतिभक्ता ॥ ३२३॥ यद्यपसव्यविभागनिनादा वामदिशं भगवत्युपगम्य ॥ पुंविहगेन समं मिलति स्यात्तद्युवतेः स्वजनाव्यभिचारः ॥ ३२४ ॥
॥ टीका ॥
( १९८ )
आहारेति ॥ यदि वामे खग्यः आहारदानग्रहणाशनानि कुर्वति खेलंति क्रीडति कलं मधुरं ध्वनंति शब्दं कुर्वति तदा अचला मुशीला यदि केवल मवामा गतिर्भवति तदा सा स्त्री निर्मथुनं कर्म हास्यादिकं करोतीत्यर्थः ॥ ३२१ ॥ वामेति ॥ यदि वामरवा यदि वाप्यनुलोमा पांडविका याति तदाभीष्टचरित्रा स्यात् यदि दक्षिणशब्दा वामगतिर्भवति तदेयं योषिन्नियतमसाध्वी स्यात् ॥ ३२२ ॥ दक्षिणत इति ॥ दक्षिणतो यदि मैथुनसंस्थं पांडविकायुगलं स्यात्तदा सा कुलटा स्याद अथ यदि तादृक्चेष्टं वामदिशि स्यात्तदासौ युवतिः पत्यनुगामिनी स्यात् ॥ ३२३॥ यदीति । यदि अपसव्यविभागनिनादा भगवती वामदिशमुपगम्य पुंविहगेन समं
॥ भाषा ॥
नामें जायकरके वा पत्रकूं मंत्रकर पूजनकरके पक्षीके युगलको पूजन कर फिरं हाथमें घर करके युगलसूं पूछे यह स्त्री सती है? तुम कहो ! ऐसे पूछै || ३२० || आहारेति ॥ जो वामभागमें खगी आहार देनों ग्रहण करनो भोजनकरनो ये चेष्टा करती होय, क्रीडा करती होय, मधुर शब्द करती होय तो अबला सुशीला होय. और जो केवल दक्षिणा होय तो वो स्त्री अतिमैथुन और हास्यादिक करें ॥ ३२९ ॥ वामेति ॥ जो पांडविका वामशब्द कर जो जेमनें भागमें आय जाय तो वांछित सुंदर चरित्र जाके ऐसी होय. जो दक्षिण शब्दकर वामगति होय तो वो स्त्री निश्चय असावी होय ॥ ३२२ ॥ दक्षिणत इति ॥ जो दक्षिणभागमें पांडविकाको युगल मैथुन करतो होय तो वो स्त्री कुलटा जाननी और जो येही चेष्टा वामदिशा में होय तो स्त्री पतिकी आज्ञा करनेवाली होय ॥ ३२३ ॥ यदीति ॥ जो जेमने भागमें शब्दकर वामदिशामें आयकरके पुरुष विहंगकरके सही
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