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पिंगलारुते द्विसंयोगफलप्रकरणम् ।
( ३४३ )
शब्दौ क्रमात्पावकवातजातौ विघ्नं विधत्तोऽभिमतार्थसिद्धयै ॥ तयोश्च जाते सति वैपरीत्ये मृत्युर्भयं वा भवति प्रभूतम् ॥ ६९ ॥ क्रमेण यद्वा क्रमवैपरीत्यात्स्यातां ध्वनी तैजसनाभसौ चेत् ॥ तदावगच्छेन्नियमेन विद्वानत्युग्ररूपं कलहं भयं च ॥ ७० ॥ प्राग्वातजोऽनंतरमांवरश्चेच्छन्दस्तथा वित्तविनाशमाहुः ॥ विपर्ययेण त्वनयोरवश्यं रणे नराणां मरणं वदंति ॥ ७१ ॥ हुताशनाकाशसमीरशब्दाः शब्दांतरादुत्तमुद्भवंति ॥ एकाकिनो वा यदि तत्प्रदिष्टाः शुभाय कार्येषु शुभावहेषु ॥ ७२ ॥
॥ टीका ॥
युद्धे नराणां शरीरनाशं कुरुतः ॥ ६८ ॥ शब्दाविति ॥ पावकवातजातौ शब्दौ क्रमा द्विनं विधत्तः अभिमतार्थसिद्धयै च स्याताम् तयोश्च वैपरीत्ये जाते सति प्रभूतं प्रचुरत रं भयं मृत्युश्च भवति ॥ ६९ ॥ क्रमेणेति ॥ क्रमेण वै त्याद्वा तैजसनाभसौ ध्वनी भवतश्चेत्तदा अत्युग्ररूपं कलहो भयं च नियमेन भवतीति विद्वानवगच्छेज्जानीयात् || ॥ ७० ॥ प्रागिति ॥ प्राग्वातजः अनंतरमांवरश्चेत्स्यात्तदा वित्तविनाशमाहुः । अनयोर्विपर्ययेणावश्यं रणे नराणां मरणं वदंति ॥ ७१ ॥ हुताशनेति ॥ हुताशनाकाशसमीरशब्दाः शब्दांतरादुत्तरमुद्भवंति यदि एकाकिनो वा भवति तदा
॥ भाषा ॥
स
शब्द होय तो संग्राम में मनुष्यनका नाश करें ॥ ६८ ॥ शब्दाविति ॥ पहले अभि शब्द होय पीछे पवनशब्द होय तो चित्र करे और वांछितसिद्धि करे जो ये शब्द त्रिप रीत होय तो मृत्यु और बहुत भय करें ॥ ६९ ॥ क्रमेणेति ॥ जो तेजस और नामये दोनों शब्द क्रमकरके होंय वा विपरीत करके होंय तो निश्चय कलह और भय प्राप्त होय ॥ ७० ॥ प्रागिति ॥ पहले पवनते अकाशको शब्द होय तो वित्तको नाश करै, जो इनको विपरीतकरके शब्द होय तो अवश्य मनुष्यनको मरण करे ॥ ७१ ॥ हुताशनाकाशेति ॥ अग्नि, आकाश, पवन ये तीनो शब्द और कोई शब्दांतर उत्तर होय वा इकलेई होंय तो शुभ कार्यनमें शुभके
करके अति उग्ररूप हुयो शब्द होय पीछे
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