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पिंगलारुतेऽधिवासनप्रकरणम् । (३२१)
॥ टीका॥ सोऽपि त्याज्यः वानरशिशुसाक्रांतश्च वर्जनीयः इति वृक्षपरीक्षा|अथ पक्षिपरीक्षा। तालवटबिल्वकपित्थस्थः पक्षी वैश्यः ।निंबापप्पलपिप्पलीकरीरजंबूकदंबस्थः क्षत्रियः आम्रमधूकखजूरीस्थः शूदाविप्रः सर्वगः।तथा दीर्घरूक्षवर्णः स्थूलनादःक्षत्रियः मधुरभाषी पिंगलवर्णः वैश्यःअल्पपुच्छो वर्तुलशीर्षोऽस्थायिनादःश्यामवर्णःशूदः । एतद्यतिरिक्तो ब्राह्मणातथाऽस्थापिशरीरः अल्पनादःस पुरुषः।अल्पशब्दमहाशरी. रा सास्त्री।पुरुषोघर्षरकंठापीतवर्ण:महाचंचुश्चेष्टाहीन आलस्यवाज्ञेयः।वहुद्विगुणस्वरवादी वृद्धो ज्ञेयः॥ अल्पपुच्छः ताम्रचंचुः स्वल्पांगः पुरुषस्वरवादी भेकवद्गामी
भायुक्तः स वालः धूसरवर्णा महाजंघा दीनस्वरकारिणी सा गर्भिणी । एवंविधा शनैगच्छति या सा प्रसविता पूर्वोक्ता कोपतःतीक्ष्णस्वरवादिनी वंध्या।स्वसवर्णखि
॥ भाषा ॥
समूह होय, मनुष्यको कोलाहल शब्द होतो होय. जहां जंगल फिरते होय. हाडनको समूह होय, श्मशान होय ये स्थान वार्जित हैं तैसही वृक्ष कहैहैं ॥ कांटेनको होय और सूखो जलो टूटो होय और तैसेंही फूटो देवमंदिर होय जीर्णघर होय दुर्ग और भीत ये गिरपडे होय उजडो ग्राम होय पडो हुयो वृक्ष होय इनस्थलनमें स्थितपिंगलपक्षी त्याग. के योग्य है. और जीर्णवाणकरके छेदन कियो होय, जलो होय, पवनकरके उखडयो होय, कटयो होय, खंडित होय ऐसे वृक्ष त्यागके योग्य हैं. वृक्षकर वेष्टित वल्लीकर वेष्टित वृक्ष त्यागके योग्य हैं. और जा वृक्षके ऊपर घूघू, शिखरा, दुष्टपक्षीनको निवास सोभी त्याग करबेके योग्य है ॥
॥ इतिवृक्षपरीक्षा ॥
अथ पक्षीपरीक्षा ॥ तालवट, बिल्ल, कपित्थ इन वृक्षनपै स्थितपक्षी होय ताकी वैश्य संज्ञा. और निंब, पिप्पल, पिप्पली, करीर, जम्बु, कदंब इनपै स्थित पक्षीकी क्षत्रिय संज्ञा है. और आम्र, मधूक, खजूर इनपै स्थितको शूद्रवर्ण है. इनते अन्य सब वृक्षनपै स्थित होय तो ब्राह्मण. और दीर्घ होय. रूखो वर्ण जाको होय स्थूलनादजाको होय वो क्षत्रिय जाननो. और मधुरभाषी होय पिंगलजाको वर्ण होय वो वैश्य जाननो. और अल्प पूंछ जाकी होय, वर्तुलाकार जाको मस्तक होय, अस्थिर जाको नाद होय, श्यामवर्ण जाको वो शूद्र जाननो. इनते व्यतिरिक्त अर्थात् न्यारो होय वो ब्राह्मण जाननो. और स्थिर शरीर जाको अल्पनाद जाको वो पुरुष जाननो. और अल्पशब्द जाको महान् शरीर जाको सो स्त्री
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