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(२१८) वसंतराजशाकुने-सप्तमो वर्गः। मुक्तारावा यातिवामा यदर्थं चौरस्य स्यादिव्यशुद्धिर्न तस्य॥ वामा हंतुं नीयपानस्यतस्य श्यामा मुक्त्यै स्यात्तु तारा वधाय ॥३९३ ।। आखेटकार्थ गमने नृपाणामगोचरस्थेषु मृगेषु तारा ॥ वामांतिकस्थेषु यदा तदानी पतत्त्यवन्यां न शरप्रहारः॥३९४ ॥ वामरवा समुपैत्यपसव्यं पांडविकायदितत्प्रविविक्षोः ॥ स्युर्वधबन्धनशोकरुगार्तिद्रव्यविनाशमृतिप्रभृतीनि ॥३९५ ॥ सव्यमुपैति रटत्यपसब्ये पांडविका यदि शोभनचेष्टा ॥ ग्रामपुरस्वगृहं प्रविविक्षुर्नृत्यतु पथिकस्तत्कृतकृत्यः ॥ ३९६॥
॥टीका ॥ ब्रह्मपुत्री चेद्यायात् तदासौ दिव्येन दह्यते ॥ ३९२ ॥ मुक्तारावेति ॥ यदर्थमिति चौरशुद्धिप्रश्ने यदि मुक्तारावा वामा याति तस्य चौरस्य दिव्यशुद्धिर्न स्यात् प्रश्नांतरे यदि हतुं नीयमानस्य तस्य वामा श्यामा मुक्त्यै स्यात् तारा पुनः वधाय भवति ॥ ३९३ ॥ आखेटक इति ॥ आखेटकार्थ मृगयार्थ नृपाणां गमने अगोचरस्थेषु मृगेषु तारा स्यात् यदा अंतिकस्थेषु मृगेषु वामा स्यात्तदानीमवन्यां शरप्रहारः न पतति ॥ ३९४ ॥ वामरवेति ॥ यदि वामरवा अपसव्यं दक्षिणं समुपैति तत्प्रविविक्षोः वधबंधनशोकरोतिद्रव्यविनाशमृतिप्रभृतीनि स्युः ॥ ३९५ ॥ सव्यमिति यदि शोभनचेष्टा पांडविका अपसव्ये दक्षिणे रटति सव्यमुपैति तदा ग्रामपुरस्वगृहं
॥भाषा॥
मक्तारावति ॥ चौरकी शुद्धि प्रश्नमें जो शब्दकर वामा गमन करे तो ता चौरकी दिव्यशुद्धि नहीं जाननी. और प्रश्नांतरमें जो काऊकू मारवे ले जाते होय ताके श्यामा वामा आय जाय तो वो आवश्यक छूटजाय और जो श्यामा तारा होय जाय तो वधके अर्थ जाननी ॥ ३९३ ॥ आखेटकार्थमिति ॥ शिकारके लिये राजा गमन करे और मृग तो नहीं दीखते हाय और श्यामा तारा होय और जो समीप मृग होय और श्यामा वामा होय तो पृथ्वीमें बाणनको प्रहार नहीं पडै ॥ ३९४ ॥ वामरवेति ॥ जो श्यामा वामरवा होय जेमने भाग आय जाय तो प्रवेशकरनेवालेकू वध बंधन शोक रोग अति द्रव्यको नाश मृत्यु इनकू आदिले सब होयें ॥ ३९५ ॥ सव्यमिति ॥ जो श्यामा शुभचेष्टा करती होय और दक्षिणमें शब्द करत वामभागमें आय जाय तो ग्रामपुर अपनो घर इनमें प्रवेश
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