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(१४८) वसंतराजशाकुने-सप्तमो वर्गः। ताराथ वामा पुनरेव तारा वामा पुनर्मिश्रफलं ब्रवीति ॥ . अंते भवेद्या बहुधापि भूत्वा निर्वाहमाहुः किल तत्फलस्य॥ ॥ १४४॥ अग्रेसरी स्त्री मिथुनस्य मध्यात्तत्पृष्ठयायी पुरुषो यदि स्यात् ॥ सर्व फलं सिद्धयति तावत्यां स्यात्किचिदूनं नरपृष्ठगायाम् ॥ १४५॥ निरीक्षितादौ युवतिर्वरिष्ठा स्यात्पूर्वदृष्टः पुरुषस्तदूनः ॥ वामां गतिं प्रत्यधिका विहंगी प्रदक्षिणां प्रत्याधिको विहंगः।। १४६॥
॥ टीका ॥ वृत्तौ चैकताराभवति तदा प्रथमंतारात्रयं समृदयै भवति पश्चात्तारा विपदे भवति अथवा निवृत्तौ निवर्तनकाले वामात्रयं पूर्व भवति पश्चानिवृत्तौ वामा भवति तदामात्रयं पुरस्ताद्विपदे भवति पश्चात्समृद्ध्यै स्यादित्यर्थः ॥१४३ ॥ तारेति ॥ यदा प्रथमं तारा अथ च पुनर्वामा भवेत् पुनरेव तारा पुनर्वामा तदा मिश्रफलं ब्रवीति । तथा बहुधापि भूत्वा या अंते भवेत् सा किल इति सत्ये । तत्फलस्य निर्वाहमाह यद्यते वामा स्यात् तदा फलस्य निर्वाहः यद्यते निवृत्तौ तारा तदा फलंप्राप्तेरनिर्वाहः॥ १४४ ॥ अग्र इति ॥ यदि मिथुनस्य स्त्रीपुरुषस्य मध्यादग्रेसरी स्त्री स्यात्तस्पृष्ठयायी तस्याः स्त्रियाः पृष्ठगामी पुरुषः स्यात्तदा सर्व फलं सिध्यति तावत्यां नरपृष्ठगायां सत्यां किंचिदूनं फलं स्याद्भवति ॥ १४५ ॥ निरीक्षितादाविति ॥ आदौ निरीक्षिता युवतिः वरिष्ठा स्यात्। पूर्व दृष्टः पुरुषः तदूनो भवति तस्याः किं
॥ भाषा॥ .. हुये पीछे एक तारा होय तो पहली तारा समृद्धिके अर्थ है; और पिछली तारा आपदाके अर्थ है; और तैसेही पहली तीनों तारा वामा होय पीछे पूजासू निवृत्तिकालमें वामा होय तो पहली वामा आपदाके अर्थ होय, पीछेकी वामा समृद्धिके अर्थ है ॥ १४३ ॥ तारेति ॥ प्रथम तारा नामदक्षिणा फिर वामां फिर तारा नाम दक्षिणा फिर वामा होय तो मिश्रित फल जाननो जो अंतमें वामा होय तो फलको निर्वाह जाननो और जो अंतमें पूजा निवृत्तिमें दक्षिणा होय तो फलप्राप्तिको निर्वाहभी न जाननो ॥ १४४ ॥ अग्र इति ॥ जो पोदकीका मिथुन कहिये जोडा होय और वा जोडामेंसू अगाडी स्त्री होय पिछाडी पुरुष होय तो सर्व कार्य सिद्ध होय; और पुरुष अगाडी होय और स्त्री पुरुषके पिछाडी होय तो. कछुक न्यून फल होय ॥ १४५ ॥ निरीक्षितादाविति ॥ जो प्रथम स्त्रीदीखे तो
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