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" नितान्त एकान्त- निवास - सत्पृही कुमारको थी सरि ददायिनी । कभी-कभी था उसके समीप वे विचारते जीवनका रहस्य थे || "
सोलह वर्षकी अवस्था तक पहुंचन-पहुंचते उन वैराग्य भावना प्रो भवन हो गई और प्रकति सहने प्रभावित क्षेत्र
मानने
नग
"मनुष्यका जोवन है वसन्त-ना हिमर्तु प्रारम्भ, निदाघ श्रन्त । जहाँ सदा भाव प्रसून फूलते विचारके भी फलते प्रनान है ||" "निया जभी जन्म, तुरन्त ने उटे विलोकी ने ये तथा ।
तो उठे
मुहूर्त जा, क्षण सुदीर्घ गोये, तब जागना
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