Book Title: Varddhaman
Author(s): Anup Mahakavi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 122
________________ ४५० यद्धमान ( ४८ ) "नितविनी, मुन्दरि, मत्तकागिनी कुरग-नेया, वर-वणिनी तथा वधू नतागी, ललिता, तुझे मिली विलामिनी, सचिवा,' मनोहग। ( ४५ ) "परन्तु त् जा विपयान्धि में पड़ा, नव्यान हा हा । कुछ धर्म में दिया, महान पापोदय ने घिरा जभी मरा, हुआ एक प्रसिद्ध नारकी। ( ४६ ) "कठोर पाये दुख, कृच्छ' कष्ट भी, विषण्णता, क्लेग तयैव यातना, महान हिमा-प्रिय निह था, अत गरीर काटा बहु खडा गया। ( ४७ ) "मृगेन्द्र-देही बन तीन जन्म यो महान हिंसामय पाप भी किये, न चेतना क्या अब भी तुझे हुई ? न ज्ञान आया, बहु खेद है मुझे। 'भौं ताने हुये । कठिन ।

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