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वर्द्धमान
( ३६ ) पुन हुआ ध्यान उन्हे कि वे सुधी प्रसिद्ध थे 'स्थावर' नाम से कभी स-वेद वेदाग स-शास्त्र धर्म के महान् ज्ञाता द्विज पूज्य-पाद थे।
( ३७ ) तथैव आयी सुधि वीर देव को कि 'विश्वनदी-सुत विश्व-भूति' के महा प्रतापी वलवान विक्रमी अजेय योद्धा जब वे प्रसिद्ध थे।
( ३८ ) पुन. हुये संसृति में प्रसिद्ध वे "त्रिपिष्ठ नारायण' नाम से कभी मिला उन्हें उत्तम चक्र-रत्न था, प्रतीक' जो धर्म-प्रचार-कार्य का ।
( ३९ ) विलोक होते निज आयु क्षीण वे असार संसार विचार चित्त में, विराग से साघु हुये, तथा गये, स-क्रोध त्यागा तन, देव-लोक को।
'चिह्न।