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पन्द्रहवाँ सर्ग
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( १६८ ) "अत करेगा अब तू निरूपणा कि द्वादशागा गति गूढ ज्ञान की; धरित्रि में सर्व-विराग धर्म की निदेशना' ही तव मुख्य कार्य है ।
( १६९ ) "चतुर्विधा सेवित सघ-शक्ति से चतुर्दशा-देव-निकाय-सेव्य है, अवश्य ही केवल-ज्ञान-युक्त हो मुदा करेगा भव-सिंधु पार तू ।
( १७० ) "त्रिलोक मे निर्मल-कीति-यक्त त प्रचार देगा जिन-धर्म-देशना वृथा न होगे मम वाक्य हे व्रती, अवश्य होगा व्रत पूर्ण अन्त मे।"
( १७१ ) चला गया काम समाज सग ले । परन्तु डोले न यतीन्द्र ठौर से,
वरच सिद्धासन बैठ शान्ति से पुन हुये लीन प्रगाढ ध्यान मे ।
'प्राज्ञा। शरीर।