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वर्द्धमान
( २० ) अनीकिनी थी वहु गुप्ति आदि की, स्वय महा सेनप कर्म-संक्षयी, समक्ष था कर्म अमित्र, सिद्धि का महर्त आया अभिसन्निपात का।
(२१ ) दिनेश मे एक विकंप आगया, समीर में एक प्रकप हो गया, तड़ाग के पंकज वेपमान थे पयस्विनी का जल काँपने लगा।
( २२ ) शरीर की रक्त-प्रवाहिनी शिरा समस्त निध्मात हुई तुरन्त ही जिनेन्द्र की लोचन पुत्तली खुली, स-वेग घूमी, फिर वन्द हो गयी।
( २३ ) अचेप्ट है ओप्ठ, अचेत है त्वचा, अहो, अहो! क्या यह अंत-काल है? पिगंग-रगा वन सिंहिनी-समा कि मृत्यु ने ली प्रभु पै उछाल है।
लेना । 'प्राक्रमग । 'कपमाव । 'वजी। पीली ।