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पढेमान
(१२) शकुन्त' बैठे भव-मुक्त वृक्ष प कलोलते है, मृदु वोल बोलते । किरी-दागा-वस्त' समन्त भूमि में प्रमन्त्र, मानदित, मोद-युक्त है ।
(१३ ) चढे गिला पै जिन काल वे सुची प्रवेग झझानिल का न था कही गिरा अनायास विना प्रहार के सु-दूर टूटा द्रुम एक ताल का ।
(१४ ) प्रशान्त सिद्धानन को लगा सुवी हुये नमासीन विशुद्ध भाव से, अभीत बैठा पिक वाम अघ्रि पै मराल भी दक्षिण जानु पैलसा ।
( १५ ) नदी-किनारे चरता त-हर्ष जो समीप आया वह धेनु-वृन्द भी, सरोज-तीरत्व तडाग के उन्हें विहाय वारेग विलोकने लगे।
'पनी । 'अर । भेट । 'जघा।