________________
वर्द्धमान
( ७६ ) विलोचनो मे रसना न थी, तथा विलोचनों से रसना विहीन थी, वखानता तो किस भाँति मै, कहो कि क्या हुआ, या किस भाँति से हुआ ?
( ७७ ) मनुष्य से भाषण में मनुष्य की सुबुद्धि होती अति तीव्र तत्परा, परन्तु द्रष्टा कहता स्व-भक्त से सुवाक्य एकान्त-निकेत में सदा ।
( ७८ ) जहाँ न पानी-पवनानलादि का प्रवेश होता महि का न व्योम का नितान्त एकान्त-निवास मे कही जिनेन्द्र थे, और अनन्त गक्ति थी।
( ७९ ) पवित्र एकान्त ! त्वदीय अक में, त्वदीय छाया-मय मजु कुज में, मुनीन्द्र, योगीन्द्र, किसे न अत में सदैव दैवी-सहचारिणी' मिली।
मुक्ति स्त्री।