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पन्द्रहवां सर्ग
( १०४ ) "चतुर्थ शोभामय सत्य अग है, असत्यता ही शुभ-धर्म-नाशिनी, प्रसिद्ध है पचम अग शौच जो पवित्रता-मडित धर्म-तत्त्व है,
( १०५ ) "सदा त्रस' स्थावर-रूप विश्व मे समस्त-प्राणी-गण-रक्षणार्थ जो किया गया पालन इन्द्रियार्थ हो, प्रसिद्ध है सयम अग धर्म का।
"पुन तपस्या दश-दो प्रकार की मनुष्य-द्वारा परिपालनीय है, पुनश्च जो त्याग प्रशस्त ख्यात है कहा गया सो शुभ अंग धर्म का।
( १०७ ) "परिग्रहो को बहु भॉति त्यागना कहा गया धर्म-अकिंचनाख्य है, महान जो सौख्यद साध-सत को तथा बनाता भय-हीन भी उन्हे ।
गर्मी से डरकर सर्दी में और सर्दी से डरकर गर्मी में भागनेवाले जीव ।