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भारहवाँ त
( २४ ) सभी के नादन श्रान्ति पा सके. अशान्त जो दानव शान्ति पा सके, यही-इसी स्थान विशेष मे-सदा पुकारले लोग जिसे श्मशान है।
( २५ ) यही सभी मानव एक्य-भाव से, प्रशान्त यात्री सत्र मृत्यु-मार्ग के, अदृष्ट होते उस दीर्घ पथ मे जहाँ न चर्चा पुनरागमादि की।
( २६ ) यही चिता, भीतिद' काल-द्वार जो, सनातनी नीद मनुष्य की यही-- विचार, है भाव यहाँ न अन्य हे अवाप्त होता अतिरिक्त भस्म के ।
( २७ ) मनुष्य का जीवन नाटय-भूमि है, प्रवेश-निवेश बने हुये जहाँ, अवाप्त होती उसको स्व-कर्म से शिशुत्व - तारुण्य - जरस्व-पात्रता ।
भयकर।