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चौदहवाँ सर्ग
( ५६ ) "न सर्प से भीति, न वन्य जन्तु से, न ग्राम से प्रीति, न काम धाम से, न खड्ग से त्रास, न हेति से भिया' नितान्त नि शक प्रयाण ध्येय है ।
( ५७ ) "जिसे सदा अक्षय सिद्धि श्रेय स्व-चित्त निर्वाण-समीप नेय है, अजस्र नि श्रेयस-कीर्ति गेय है, अवश्य कैवल्य उसे विधेय है।
( ५८ ) "अत. चलूंगा कल मै अवश्य ही मुझे महा-सिद्धि-विवाह ध्येय है प्रवृत्त होगी कल मार्ग मास की पवित्र शुक्ला दशमी मनोरमा ।"
( ५९ ) सभी जनो ने बहु खिन्न भाव से कमार-संकल्प सुना अवाक हो, परन्तु लौकाकित देव-मंडली तुरन्त बोली जयकार दे उन्हे -
'डर। मार्गशीर्ष मास ।
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