Book Title: Varddhaman
Author(s): Anup Mahakavi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 115
________________ ४१७ चौदहवाँ सर्ग ( ५६ ) "न सर्प से भीति, न वन्य जन्तु से, न ग्राम से प्रीति, न काम धाम से, न खड्ग से त्रास, न हेति से भिया' नितान्त नि शक प्रयाण ध्येय है । ( ५७ ) "जिसे सदा अक्षय सिद्धि श्रेय स्व-चित्त निर्वाण-समीप नेय है, अजस्र नि श्रेयस-कीर्ति गेय है, अवश्य कैवल्य उसे विधेय है। ( ५८ ) "अत. चलूंगा कल मै अवश्य ही मुझे महा-सिद्धि-विवाह ध्येय है प्रवृत्त होगी कल मार्ग मास की पवित्र शुक्ला दशमी मनोरमा ।" ( ५९ ) सभी जनो ने बहु खिन्न भाव से कमार-संकल्प सुना अवाक हो, परन्तु लौकाकित देव-मंडली तुरन्त बोली जयकार दे उन्हे - 'डर। मार्गशीर्ष मास । २७

Loading...

Page Navigation
1 ... 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141