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[वंशस्थ]
( १ ) न काल जाते लगता विलम्ब है, विहाय चारित्र्य न काल-लब्धि भी, विलोकते विश्व-दशा सनातनी कुमार को त्रिंशति वर्ष हो गये।
(२) दिखा पडे काल-महा-समुद्र में कि वर्ष वे त्रिंशति बुन्द-तुल्य थे, त्रिलोक मे कौन पदार्थ है कि जो न काल के नाशक हस्त मे गया।
कुमार पीछे फिर देखने लगे कि दृष्टि से ओझल भूत ज्यो हुआ; शनै गनै काल-कपाट तीस वे हये सभी मद-विराव' वन्द थे।
'तोस । 'किवाड़े । 'चुपके।