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बारहवां सर्ग
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( ३२ ) प्रभात के पक्ष-प्रसार पै चढी गभस्तियाँ ज्यो रवि की प्रकाशती कुमार की प्रस्तुत भाव-शैलियाँ विराजती थी हृदयाधिरूढ हो ।
अनादि भू और अनन्त कालके नितान्त निर्मोक' विचार व्याप्त थे, बना रही थी जिन की गभीरता कि सूनु है वे अमृतत्व-कुक्षि के।
( ३४ ) विचार, जो सृष्टि-प्रवाह मोडते, प्रसूत होते वह आत्म-तत्त्व से, कुमार की जो हृदयानुभूति को वना रहे थे परिपुष्ट नित्य ही।
(३५) महान है वे नर जो विचारते कि तत्त्व जो पुदगल' से वरिष्ठ है, प्रसिद्ध आध्यात्मिक है वही कि जो धरिटि-संचालन में समर्थ है ।
नन। भौतिक पदार्य ।