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वर्द्धमान
( ८४ ) न वस्तु है भू पर मृत्यु नाम की कदापि नक्षत्र न डूबते कही, विभासते जाकर अन्य लोक में प्रकागते व्योम-किरीट मे सदा।
( ८५ ) घरित्रि मे जीवन आ प्रवेग से कहा स-तार स्वर 'मृत्यु-मृत्यु' ही, दिगत के कदर बोलने लगे, किया प्रतिध्वानित 'मृत्यु-मृत्यु' ही।
महान आश्चर्य, कि जीव जो गये विनाग के अंध-तमिस्र मार्ग मे, कदापि लौटे न, बता सके नहीं, प्रयाण का उत्तम मार्ग कोन है।
(८७ ) अनेक-रपा बह-वेपिणी तथा मिलोप-जेत्री' तुम्-मीन अन्य है, नदंव त हो गवो बना भी कि मनिकापास प्रतिमार।