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वर्तमान
( ३६ ) करे प्रशसा अति ही मुनीन्द्र या कबीन्द्र चाहे रच दें गुणावली, सुकीर्तिता शेप-सहस्र-मौलि से, भले रहे, किन्तु जग विदूप्य है।
मनुप्य का यौवन भूल से भरा, तथा प्रगल्भत्व त्रिशूल से भरा, जरत्व भी निष्प्रभ धूल में भरा, मस्स्थ भू-खड बबूल से भरा।
( ३८) मनुष्य है जीवन-जात' कज-ना प्रफुल्ल आरम स-रम्य भानता परन्तु होता अनु-हीन मीन ही, विनष्ट होते वन गुप्फ पत्र भी।