________________
१४४
वर्द्धमान
( २० ) निविप्ट हो पंजर मे मराल ज्यो हिमाद्रि के कदर मे यथा नखी प्रवीर . ज्यों कुंजर के वरंड' मे तथा शशी अवर में प्रविष्ट था।
( २१ ) कि व्योम-वापी-सित-पुंडरीक था, कि मार-गाणोपलाही विराजता कि रात्रि-वामा-कर-रिक्त गेंद-सा शशाक कूदा नभ-वर्ष मे तदा ।
(२२) नभोलता-कुंज-उपागता तथा प्रमोद - पाकुल-तारका - मयी निगागना की तम-पूर्ण कचुकी स-वेग खीची कर से गशाक ने।
( २३ ) मयूख-लेखा प्रथमा शशांक की, कि रात्रि की कुंकुम-चर्चिका लसी', प्रवाल की पक्ति अगोक-व्योम की,
कि मारकी थी मणि-कुंत-वल्लरी। 'होदा। 'कूप । 'शान रखने का पत्थर। 'मैदान । 'किरण। 'तनो मार