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वर्द्धमान
( २० ) कभी-कभी ले चरवाह वंशिका प्रसन्न गाते सरि के समीप थे, कुमार के भी मन मे अनेका विशुद्वता-सयुत राग' फैलते ।
( २१ ) अहर्निगा एक-रमा प्रवाहिता, महान-पूता, वहु-नीर-सयुता, अजन प्रालेय-गिरीन्द्र-उद्भवा' प्रमोददा थी सरिता कुमार को।
( २२ ) नदी वनी काल-प्रवाह-तल्य ही अहनिना थी वहती जलोत्तमा , अहार्य-कन्या अति गवित-गालिनी नही पयो का योग नाटाती।