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वर्द्धमान
( २८ ) "वजा जभी अश्रुत' काल-यंत्र तो भुका दिया गीस प्रमून-वृन्त ने विलोकिये, है कहते उसे, शुभे! तुरन्त सर्वेग-निदेश-पालना।
( २९ ) "हिरण्य-वर्णे। सुमने मुर-प्रिये ! अये जनेप्ठे वन-चद्रिके ! सहे । अये सुगधे । अयि चन्द्र-वल्लिके । वसन्त ने स्वागत प्रेम से किया।
"प्रभात-ओस-स्नपिता' कुमारिका समीर-सचालित हेम-यूथिका भ-चक्र-सपोपित स्वर्ण-जातिका खिली हुई चित्र-अरण्य'-अक मे
(३१) “न ज्ञात है कौन प्रसून प्रेय है, न जानती सुन्दर पुष्प कौन है, सहा', गवाक्षी अथवा शिखडिनी'
कि मालती, माधविका कि मल्लिका। जो न सुना जा सके। 'चमली। 'वेला। 'माववी। हुये । 'फुलवाडी। गुलाब । वेला। जूही (सफेद) ।
लान दिन