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[ वंशस्थ ]
( १ ) शनै शनै अष्टम वर्ष भी गया, कमार पौगड'-दशाधिरूढ थे, प्रभूत-शारीरिक-कान्ति-युक्त वे पवित्र वाणी-मन-कर्म से बने ।
( २ ) विभूषणो से, व्रत-शील-आदि से, सभी गुणो से परिपूर्ण शोभते, समस्त विज्ञान, सभी कला उन्हे अवाप्त हस्तामलकत्व' को हुई।
सभी सखा-सग कुमार एकदा चले, गये बाहर खेलते हुये, निदाघ का उष्ण प्रभात-काल था, अरण्य था सुन्दर राजता हुआ ।
हाथ में आँवलेके समान ।
'पाँच से दश वर्षकी अवस्था। 'ग्रीष्म ऋतु ।
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