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सातवां सर्ग
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( ३२ ) "कपोल-आरक्त गुलाब के लसे पिशग' सारी पहने वसन्तजा वरांगना है, यह शीतल-च्छदा प्रसन्न सर्वांग-समुज्वला सिता।
( ३३ ) "प्रसून-भाषा- हृदयानुमोदिनी अबोध को भी अति बोध-गम्य है, प्रसून-शोभा चढ कूट-शृग पै, बिछा रही तारक-राशि व्योम मे ।
"प्रसून-भाषा मृदु प्रेम की कथा, प्रसून-माला युग प्रेम की कथा, प्रसून-वर्षा सुर-प्रेम की कथा, प्रसून-आभा प्रभु-प्रेम की कथा।
( ३५ ) "विशाल वल्ली-वन मे, वनान्त में, दिवा-उडु-स्तोमर प्रसून-गुच्छ मे, विहीन हो जो कि अपांग-पात से मुखेन्दु तेरा त्रिशले । विलोक ले।
_ 'पीली । नेवारी। दिन में उगे हये नक्षत्रो का समूह ।
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