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________________ सातवां सर्ग २०६ ( ३२ ) "कपोल-आरक्त गुलाब के लसे पिशग' सारी पहने वसन्तजा वरांगना है, यह शीतल-च्छदा प्रसन्न सर्वांग-समुज्वला सिता। ( ३३ ) "प्रसून-भाषा- हृदयानुमोदिनी अबोध को भी अति बोध-गम्य है, प्रसून-शोभा चढ कूट-शृग पै, बिछा रही तारक-राशि व्योम मे । "प्रसून-भाषा मृदु प्रेम की कथा, प्रसून-माला युग प्रेम की कथा, प्रसून-वर्षा सुर-प्रेम की कथा, प्रसून-आभा प्रभु-प्रेम की कथा। ( ३५ ) "विशाल वल्ली-वन मे, वनान्त में, दिवा-उडु-स्तोमर प्रसून-गुच्छ मे, विहीन हो जो कि अपांग-पात से मुखेन्दु तेरा त्रिशले । विलोक ले। _ 'पीली । नेवारी। दिन में उगे हये नक्षत्रो का समूह । १४
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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