________________
वद्धमान
( ३६ ) "विलोपने को तमको, नपालिके! अजन्य जागी नव रात कणिका, उपा-समा आनन की प्रभा लवे हुयी महर्षाव महा, न ओम है ।
( ३७ ) "कि अजगलोचन-जनार्यः ही सिरे हुये वारिज है ताग में, कि अप्ना-बोलन-नाम्य के लिये उगे हुये है तर मे गरोनही ।