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पाठवॉ सर्ग
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। ( ४८ ) निशेश के सम्मुख अधकार ज्यो, दिनेश के सम्मुख भूत-प्रेत ज्यो, जिनेश के सम्मुख वाम-कर्म' त्यो चला गया शीघ्र पलायमान हो ।
( ४९ ) नरेश के प्रागण-मन्य प्रात से मृदग-वीणा-ढफ-मोरचग ले सगीत मे गायक-गायिका लसे स्व-नृत्त मे नर्तक-नर्तकी पगे।
( ५० ) नृपाल - आनद - समुद्र' - वीचियाँ तुरन्त फैली सब ग्राम-ग्राम मे, सभी प्रजा हो मुदिता इतस्तत जिनेन्द्र-जन्मोत्सव थी मना रही।
हिरण्य, हीरा, हय, हस्ति, हेम ले नृपाल थे यानक-वृन्द तोषते, स्व-सेवको को बहु दान-मान दे अनाथ को भी करते स-नाथ थे।
' वाम-मार्ग के कर्म । 'प्रांगन ।