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वर्द्धमान
( ४४ ) प्रसन्न लक्ष्मी गृह में विराजती, तथैव चितामणि राज्य-कोष में, वसी विधात्री' मुख-मध्य शोभना, प्रचड बडी भुज-दंड पै लसी।
नरेन्द्र भू पै मलयाद्रि-तुल्य थे महाह-गाखा-सम हस्त में लसी कृपाण सर्पाकृति', जो निकालती सुकीर्ति का कचुक गत्रु-कठ से ।
(४६ ) मुधैर्य, लावण्य, तथा गंभीरता, अनूप तीनो गुण है समुद्र मे, परन्तु जो नेत्र-प्रमोद दे सके नरेन्द्र-सा विग्रह' सो न पा सका।
( ४७ ) न स्वप्नमें भी रण-मध्य भूप को विमोचती थी सुभगा जयेन्दिरा' प्रभाव' से पूर्ण ययंत्र कान्त को न छोटती है वनिता रति-प्रिया ।
मरस्वती। 'बदन । 'मर को प्रारनि की। "तन-प्राण, मन्नाह । शरीर। विमान। “वनंम्ब ।