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दूसरा सर्ग
( ८६ ) "नरेश-भावोद्गत-नीर के लिए प्रसुप्त तेरा मुख सिधु-सा बना, नरेन्द्र की जीवन-ह्रादिनी-गता प्रफुल्ल है वृत्ति प्रफुल्ल-कज-सी।
( ८७ ) "समीर से सूक्ष्म विहग-पक्ष है, कृपीट है सूक्ष्म विहग-पक्ष से, परन्तु सु-भ्रू अति भूरि-भाविनी प्रसिद्ध है सूक्ष्म कृपीट-योनि' से।
( ८८ ) कहा गया है, प्रमदा-अपाग ने गिरा दिया मानव को धु-लोक से, परन्तु वामा-हृदयाब्ज ने, अहो । सदा बनाया दिव-तुल्य भूमि को।
( ८९ ) "प्रफुल्लता और पवित्रता, तथा विशुद्धता, शाश्वत प्रेम-भावना, कहे गये जो गुण स्वर्ग-लोक के लखे गये वे ललना ललाम मे ।
'तडाग । 'धुआँ । 'अग्नि । 'स्वर्ग ।