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वर्द्धमान [ मालिनी]
( ५२ ) जलद-पटल से जो रुद्ध होता नहीं है, त्रसित-प्रसित होता राहु-द्वारा नही जो, अपहृत-छबि नारी-वक्त्र' से भी न होता यश-शशधर ऐसा भूप सिद्धार्थ का था।
[ वंशस्थ ]
महीप सिद्धार्थ प्रतापवान की अनुप भाऱ्या त्रिशला मनोरमा विराजती थी छवि-गेह में शुभा प्रदीप-सी मंजु प्रदीप-दशिनी।
( ५४ ) गुणान्विता, यौवन-सपदन्विता, नु-पडिता, बुद्धि-विवेक-शालिनी, प्रकागती चद्र-कला-समान थी नपाल-चित्तोदवि-मोद-बद्धिनी ।
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'मग 'बद्रमा।