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दूसरा सर्ग
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( २३ ) पयोद जैसे निज दान-मान से बना रहे मुग्ध मयूर-वृन्द को, तथैव कदर्प स्व-मान-दान से बना रहा उग्र युवा-समूह को।
( २४ ) अनेक-रागान्वित, स्थैर्य-हीन भी, अजस्र दुष्प्राप्य, गुणादि-हीन भी, नवागना के रस-सिक्त चित्त-सा बना रहा प्रावट इन्द्र-चाप को।
( २५ ) लखो, महा धूसर धूलि से हुआ प्रमोद देता किसको न खेल से, स-पुत्रिका के पट-सा विलोकिये, मलीन है अवर वारि-वाह से ।
( २६ ) महान वर्षा यह हो रही, लखो, सु-वर्ष से वासर दीर्घ हो रहा, सभी दिशा, नीर-तरग-युक्त है, महीप क्यो नीरत-रग हो नही ।
रग-युक्त । वर्षा-ऋतु । 'पुत्रवती । वर्षा अथवा वर्ष । 'काम-हीन ।