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भगवानने उन दिन
'विवाह,
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"प्रभो । तुम्हारे प्रिय ज्येष्ठ भ्रानुको अभीष्ट है कौतुक प्रापका नये"
(३८६-६)
"कहा किमी ज्योतिष- विज्ञनं कभी विवाह होगा मम तोम वर्षमें
तथा मिलेगी मुनको वधू कि जो सुभाग्यमे ही मिलती मनुष्यको
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xes नौभाग्यवती स्तनका
वाप्त होना कुछ खेल है नहीं, वही वली पा सकता उसे कि जो खपे, मरे, और जिये श्रनेकधा । सुना किसीमे वह दिव्य नायिका, विराजती तेरह खड वामपं । अजल आरोहण रात्रि-वारका सुमार्ग भी दीर्घ त्रयोदशाब्द है ॥ न शीघ्रगामित्व, न नंदगामिता, न यान साहाय्य, न दड धारणा । न पास पायेय, न दात-मंडली तयापि जाना अनिवार्य कार्य है ॥" (४१६ - ५० से ५४ तक )
(३४९-१८)
तेरह गुणस्यान ।