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हीराजी सोलंकी तथा श्री देवराज गणपत के प्रति आभार प्रदर्शन करना अपना कर्तव्य समझते हैं ।
इन व्यक्तियों के अतिरिक्त कुछ संस्थाओं ने भी ग्राहक बन कर हमें प्रोत्साहित किया है । ऐसी संस्थाओं में हम आदीश्वर जैन मंदिर ट्रस्ट पायधुनी नगीनदास कर्मचन्द्र जैन पौषधशाला, अन्धेरी (बम्बई); हेमचन्द्र जैन सभा पाटन; जैन संघ कर्नूल के प्रति विशेष रूप से आभारी है ।
साथ में दिये चित्रों के सम्बन्ध में दो शब्द कह दें । पुस्तक के प्रारम्भ में महावीर स्वामी का जो चित्र है, वह कंकाली टीला (मथुरा) में प्राप्त एक गुप्तकालीन मूर्ति का फोटो है ।
पुस्तक के अंत में दिये चित्रों में प्रथम ऋषभदेव का और द्वितीय वर्द्धमान भगवान का जो चित्र है, वह कल्पसूत्र की एक हस्तलिखित प्रति का है । वह प्रति आचार्या श्री के संग्रह में थी और आचार्यश्री ने उसे नेशनल म्यूजियम दिल्ली को भेंट कर दिया । यह कल्पसूत्र म्यूजियम में प्रदर्शित है ।
तीसरा चित्र गर्भापहार के प्रसंग का है । उसमें हरिणेगमेषी बना है । वह कंकाली टीला (मथुरा) में प्राप्त एक कुषारण -कालीन मूर्ति का फोटो है । और, चौथा चित्र वर्द्धमान भगवान् का है । यह भी कुषारण - कालीन एक मूर्ति का फोटो है । यह मूर्ति लखनऊ-संग्रहालय में सुरक्षित है । इसके लिए हम पुरातत्व विभाग के आभारी है।
यशोधर्म मंदिर १६६ मर्जबान रोड, अंधेरी, बम्बई ५८ विजयादशमी १९६०.
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काशीनाथ सराक
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