________________
२०
चेतना के विकास का बड़ा महत्त्वपूर्ण योग है ।
1
चन्द्रमा स्पष्ट आलंबन है । चन्द्रमा को देखते हैं, चन्द्रमा पर ध्यान टिका देते हैं, खुली आंख से उस पर ध्यान करते हैं । अनेक साधक दीप को सामने रखकर उसकी - लौ पर ध्यान टिका लेते हैं । त्राटक का एक प्रकार है दिये की लौ पर खुली आंखों से ध्यान करना। रत्न-रश्मि पर भी ध्यान किया जाता है। समाचार पत्र में पढ़ा- एक अमेरिकन महिला रत्न-रश्मि पर ध्यान टिकाती और भविष्यवाणियां करती । सूर्य, चन्द्र, दीप, रत्न, रश्मि - इन सब पर ध्यान टिकाया जाता है और हमारा ध्यान संध जाता है । ये परालंबन हैं, पदार्थ- आलंबन हैं । इसी प्रकार अनेक वस्तुओं का आलंबन लिया जा सकता है। जो बहुत गहरे ज्ञानी ध्यानी हो जाते हैं, जिनका ध्यान बहुत विकसित है, वे परमाणु पर ध्यान टिका देते हैं ।
तब होता है ध्यान का जन्म
ध्यान के महान साधक के लिए एक विशेषण आता है- एगपोग्गलनिविट्ठदिट्टी - एक पुद्गल पर अपनी दृष्टि टिका देना । महावीर के लिए यह विशेषण प्रयुक्त हुआ है। जब महावीर ध्यान की लम्बी-लम्बी प्रतिमाएं करते थे तब एक पुद्गल पर दृष्टि टिका देते थे । वे सोलह-सोलह दिन-रात तक अनवरत अनिमेष प्रेक्षा करते थे । यह परालंबी ध्यान है, पर - आलंबन पर होने वाला ध्यान है ।
शरीरालंबन ध्यान
दूसरा है स्व - आलंबन ध्यान। इसके लिए काफी अभ्यास चाहिए। पहले भिन्न पर अभ्यास करें। जब हमारा अभ्यास इतना परिपक्व हो जाए, चेतना इतनी दक्ष बन जाए कि वह निरालंब पर टिक सके तब हम निरालंब पर ध्यान करें, अपनी आत्मा के स्वरूप पर ध्यान करें । ये दो बातें बतलाई गई, तीसरी बात हम और जोड़ दें । परालम्बन है पदार्थ का आलम्बन । उसके साथ एक विषय और जुड़ता है, जो न परालम्बन है और न स्वरूपालम्बन । वह है शरीरालम्बन, शरीर के अवयवों पर ध्यान टिकाना ।
एक विषयवती प्रवृत्ति
महर्षि पतंजलि ने एक विषयवती प्रवृत्ति का उल्लेख किया है - एक विषयवती प्रवृत्तिरुत्पन्ना मनसः स्थितिनिबंधनी - एक विषयवती प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है तो मन को एकाग्र कर देती है। पांच इन्द्रियों के पांच विषय । नासाग्र पर ध्यान करें । नासाग्र ध्यान का मुख्य केन्द्र रहा है। उस पर ध्यान करने से दिव्य गंध उत्पन्न हो जाती है। गंध हमारे सामने नहीं है पर गंध का अनुभव होने लग जाता है। बहुत सारे ध्यान करने वाले व्यक्ति कहते हैं, पता नहीं, क्या बात है, हमें चन्दन की सुगन्ध आने लग जाती है। हमारे आस-पास कुछ भी नहीं होता फिर भी चन्दन की सुगन्ध कहां से आती है ? ऐसा क्यों होता है? एक व्यक्ति नासाग्र पर ध्यान करता है । जैसे-जैसे वह सधता है वैसे-वैसे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org