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तब होता है ध्यान का जन्म
चाट लिया। यह क्या मकान बनायेगा ? मकान बनाने की इतनी बड़ी बात कर रहा है, कहीं धोखा न हो जाए। बातचीत शुरू हुई । सेठ ने कहा- 'मकान बनाना शुरू करना है ।'
कारीगर बोला- 'सेठ साहब ! मैं आपका मकान बना दूंगा, पर एक बात का ध्यान दें-जिस दिन मकान की नींव की खुदाई पूरी होगी, उस दिन नींव में एक मन घी की आहुति देनी होगी । उससे नींव मजबूत बन जाएगी, अन्यथा नींव मजबूत नहीं बनेगी । ' सेठ ने कहा- 'ठीक है ।'
काम शुरू हुआ । सेठ ने कारीगर के सामने एक मन घी का पात्र रख दिया। कारीगर चक्कर में पड़ गया। सेठ बोला- 'यह लो घी । '
सेठ साहब ! अब विश्वास हो गया है कि मकान बन जाएगा ।'
'संदेह क्यों हुआ? कब हुआ ? '
'सेठ साहब ! दो-चार बूंदें घी की नीचे गिरी और आपने घी को चाट लिया । मैंने सोचा - सेठ इतना कंजूस है, मकान कैसे बनाएगा । अब मुझे विश्वास हो गया है कि मकान बन जाएगा ।'
सेठ ने सोचा- यह कारीगर है, कर्मकर है, लेकिन विवेकी नहीं है, विवेक करना नहीं जानता। सेठ ने कहा- 'अनावश्यक दो-चार बूंदें भी खराब नहीं होनी चाहिए, बेकार नहीं जानी चाहिए और यदि आवश्यकता है, तो एक मन के स्थान पर दस मन घी भी डाला जा सकता है ।
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विवेक यह होना चाहिए - हम शक्ति का उपयोग करें, किसी वस्तु का व्यय करें तो कहां करें। एक प्रश्न होता है - बहुत सारे लोग अपव्यय करते हैं । अपव्यय का मतलब क्या है? एक व्यक्ति ने दस हजार मनुष्यों को भोजन कराया और कहा जाता है कि पुण्य कर दिया। यह अपव्यय है । यदि उतना स्कूल के मकान बनाने में लगा दिया, हॉस्पिटल में लगा दिया, अतिथि गृह में लगा दिया तो वह समाज के उपयोग का प्रश्न है । अपव्यय वह होता है, जिसका लाभ प्रतिलाभ के रूप में न मिले, स्थाई और व्यापक रूप में न मिले। जहां शक्ति लगे, पैसा खर्च हो और जिससे समाज को कोई लाभ मिले, वह अपव्यय नहीं कहलाता ।
कारीगर की आंखें खुल गई। उसने सोचा, यह बिल्कुल ठीक बात है । शक्ति का अपव्यय नहीं होना चाहिए। उसका निरर्थक खर्च नहीं होना चाहिए । खर्च की सार्थकता होनी चाहिए ।
हम पहले विवेक करें-शक्यता क्या है? क्या मैं अपनी इन्द्रिय का निरोध कर
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