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नशा और ध्यान
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सांप काटने से न मरने वाले व्यक्ति मनुष्य के काटने से मर जाते हैं।
हिन्दुस्तान ही नहीं, अमेरिका, यूरोप आदि विश्व के प्राय: देश बहुत चिन्तित हैं कि नशा बहुत बढ़ रहा है। जिस समाज में नशा बढ़ता है, उसमें कर्तव्य-बोध और दायित्व-बोध समाप्त होता है। ऐसी निकम्मी पीढ़ी का जन्म होता है, जो काम की नहीं होती, केवल नशे में धुत रहती है। यह समाज के लिए बड़ी चिन्ता का विषय है, पर कठिनाई यह है-आज समस्याएं बहुत हैं, चिन्ता और भय के कारण बहुत हैं । इस स्थिति में आदमी कैसे जीए? तनाव न मिटे, चिन्ता न मिटे तो जीना मुश्किल है। नींद न आए, थकान न मिटे तो आदमी कैसे जीए? एक नशे की गोली ली और नींद आ गई। उस समय न चिंता है, न भय है। आज तो कुछ ऐसे द्रव्य विकसित हो गए हैं, जिन्हें लेने के बाद व्यक्ति को ऐसा लगता है कि जैसे स्वर्ग में पहुंच गया है। घूमती है दुनिया
__ नशे में धुत आदमी ने एक टेक्सी को रोका और ड्राइवर से कहा-मुझे जाना है। वह टेक्सी में बैठ गया। ड्राइवर ने पूछा-कहां जाना है? वह पागल सा हो गया, बता नहीं सका कि मुझे कहां जाना है। दस-बीस मिनट उसी प्रकार बेसुध-सा बैठा रहा। ड्राइवर ने सोचा-कोई पागल आदमी है। उसने कहा-नीचे उतरो।
'क्या मेरा घर आ गया?' ड्राइवर ने कहा-'हां, आ गया।' 'ठीक है पर कार को इतना तेज मत चलाया करो, थोड़ा धीमे-धीमे चलाया करो।'
उसे यह पता ही नहीं था कि कार चली कहां है? नशे में इस प्रकार की विक्षेप जैसी स्थिति बन जाती है।
एक आदमी ने बहुत नशा कर लिया। सिर चकराने लगा। चौराहे पर खड़ा देख रहा है-सारी दुनिया घूम रही है। पुलिस ने कहा-'अरे! चलो, जाओ अपने घर ।' उसने कहा-'इसीलिए तो यहां खड़ा हूं। दुनिया घूम रही है, जैसे ही मेरा घर आएगा, मैं उसके भीतर घुस जाऊंगा।' जरूरी है जागरूकता
ऐसी विचित्र स्थितियां नशे की अवस्था में बनती हैं, जागरूकता पूरी समाप्त हो जाती है। वह समाज, जो अपनी जागरूकता को खो देता है, किसी काम का नहीं होता। भगवान महावीर ने अपने प्रिय शिष्य गौतम को संबोधित कर कहा-एक क्षण के लिए भी प्रमाद मत करो, निरंतर जागरूक रहो। साधना की एक भूमिका का नाम है-यथालन्दक।
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