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सामाजिक समता और ध्यान
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होने के हेतु हैं । मांसपेशियों की शिथिलता, शरीर की स्थिरता और कायोत्सर्ग की मुद्रा में बाहर के प्रभाव कम हो जाते हैं । सक्रियता, चंचलता, तनाव - ये बाहरी प्रभाव को आमंत्रित करते । शरीर की निष्क्रियता, शिथिलता, मांसपेशियों की शिथिलता, इन्द्रियों की प्रतिसंलीनता और प्रत्याहार-ये बाहर के प्रभाव को कम करते हैं, व्यक्ति को अप्रभावित बनाते हैं । जैसे-जैसे आदमी ध्यान से प्रभावित होता है वैसे-वैसे तटस्थता बढ़ती जाती है। तटस्थ व्यक्ति ही सामाजिक अव्यवस्था को विराम दे सकता है, सामाजिक विषमता को कम कर सकता है । इस दृष्टि से सामाजिक समता और ध्यान में गहरा संबंध है।
ध्यान का भार क्यों?
प्रश्न हो सकता है - यह कार्य तो शिक्षा के द्वारा भी हो सकता है। शिक्षा में यह बताया जाता है कि सामाजिक विषमता के क्या सिद्धांत हैं? सामाजिक शिक्षा के कितने अच्छे परिणाम हैं? जब शिक्षा के द्वारा यह संभव है तब ध्यान को बीच में क्यों जोड़ा जाए ? विद्यालय में शिक्षा का एक पाठ पढ़ा और बात समझ में आ गई। इससे सामाजिक विषमता टूटने लगेगी, समता आने लगेगी। फिर ध्यान का भार क्यों बढ़ाया जाए ? विद्यार्थी के पास पहले से ही पुस्तकों का बहुत भार रहता है। एक छोटा विद्यार्थी अपना बस्ता लेकर चलता है तो ऐसा लगता है कि जैसे कोई भारवाहक चल रहा है । इस स्थिति
ध्यान का भार क्यों बढाया जाए ? यदि शिक्षा से ही वास्तविक समाधान होता तो ध्यान को बीच में बिठाने की जरूरत नहीं होती, किन्तु यह बात बहुत प्रमाणित हो गई है कि कोरी वाचिक शिक्षा इसमें सफल नहीं बनती। जब तक संवेदना को न जगाया जाए, तक संभव नहीं है ।
तब
अभाव संवेदनशीलता का
ध्यान का एक बहुत बड़ा परिणाम है- संवेदना को जगा देना । चाहे उसे करुणा कहें, अनुकम्पा या दया कहें, अहिंसा अथवा मैत्री का भाव कहें। जहां वह जाग जाती है, वहां विषमता टिक नहीं पाती । यदि पूरा समाज विषमता को छोड़कर समता से रहे तो सामाजिक समता विकसित हो सकती है। यदि उच्च वर्ग में, आभिजात्य वर्ग में संवेदना होती तो एक हरिजन को मंदिर में जाने से कभी नहीं रोका जाता । जब मनुष्य में क्रूरता पनपती है तब ये सारी स्थितियां घटित होती हैं। जिस व्यक्ति में संवेदना जाग गई, समता की अनुभूति जाग गई, उसका चिंतन भी दूसरे प्रकार का बन जाता है ।
विकलांगों की एक संस्था में सैकड़ों विकलांग रहते थे । संस्था की व्यवस्थापिका एक दिन विकलांगों को शहर के कुछ खास-खास स्थल दिखाने ले गई। उसने स्थल दिखाए, उसके बाद जहां सर्कस चल रहा था, वहां ले गई सब बैठ गए। सबने सर्कस
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